Friday, June 25, 2010

शिमला: दो से भले तीन

सुबह रतिराम जी ने दरवाजा खटखटाया तब आंख खुली एक अच्छी थकान भरी नींद से जागने के बाद जो ताजगी महसूस होती है उसी अलसाई बदन से मैने गेट खोला रतिराम जी गर्म चाय की दो प्यालियों के साथ हाजिर थे।एक ठंडी सुबह मे जगते ही बेड टी मिल जाए इस से अच्छी दिन की क्या शुरुवात हो सकती है,मैने रतिराम जी को दिल से धन्यवाद कहा फिर उन्होनें नाश्ते मे बारे मे पुछा कि कब करेंगे मैने कहा आप अपनी सुविधा से दे सकते है जैसे ही तैयार आप रुम मे ले आना। रतिराम जी के व्यक्तित्व मे एक खास बात यह है कि वें उतनी ही बातचीत करते है जितनी जरुरत हो...और वह भी सेवक के भाव से हालांकि वे उम्रदराज़ है लेकिन जिन्दादिल इंसान भी है। चाय की चुस्कियों के साथ यह अहसास हुआ कि बाहर बारिश हो रही सो मौसम के सुहावने होने का पूर्वानुमान हो गया। हमारी इस यात्रा मे एक खास बात यह रही कि हम लोगो से निवृत्त (फ्रेश) होने मे न्यूनतम समय खर्च किया सो जल्दी ही हम दोनो एकदम नाह धोकर तैयार हो गये तभी रतिराम जी दुबारा दस्तक हुई और इस बार वो नाश्ते मे दो-दो आलू के परांठे साथ मक्खन,अचार और चाय के साथ थे,हालांकि परांठे थोडे ठंडे थे लेकिन स्वादिष्ट लगे। हम खा-पी कर एकदम तैयार थे फिर सुशील जी के साथ उनके पहूंचने की स्थिति को लेकर एसएमएस बाजी हुई तब उन्होंने बताया कि रास्ते मे बारिश बहुत हो रही है लेकिन 9 बजे तक पहूंच जाएंगे इस गेस्ट हाउस मे वें एक बार पहले भी मुकेश जी के साथ ठहर चूके हैं सो आने के मार्ग का सरसरी तौर पर उन्हें अन्दाजा था मैने थोडे दिशा निर्देश दिए ताकि उनको रिमाइंड करने मे आसानी हो सके। बारिश तेज़ हो गई है सो हमने भी रुम पर रुककर सुशील जी की प्रतिक्षा करना उचित समझा,लेकिन 9 बज जाने के बाद हमे भी एक खास किस्म की बैचेनी होनी शुरु हो गई और लगने लगा कि शायद सुशील जी यहाँ तक पहूंचने का सही मार्ग न मिल पा रहा हो सो हमने कनेक्टिंग रोड पर जाने का फैसला किया बारिश तेज होने बावजूद भी हम निकल पडे बचते बचाते थोडी ठंड भी लग रही है अभी आधे ही रास्ते मे पहूंचे थे कि लगा अगर अब कही न रुके तो तरबतर हो जाएंगे सो एक मकान के नीचे शरण ली..तभी सामने नजर पडी कि सुशील जी अपनी मर्दाना जैकिट और छाते के साथ पैक हुए धीरे-धीरे नीचे हमारी तरफ आ रहे है परस्पर मुस्कान और अभिवादन के साथ हम दोनो ने भी उनके छाते के नीचे शरण ली और रुम की तरफ बढ चले...अब ये तिकडी बन गई थी सो शिमला मे हम हो गये है दो से तीन और वो भी एक छाते के नीचे सहअस्तित्व का इससे बडा भाईचारे भरा उदाहरण पूरी शिमला मे नही हो सकता है..।

सुशील जी ने कमरे का अस्त व्यस्त सामान देखने के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोडते हुए कहा कि क्या हम तीनो के अलावा कोई और भी रुम मे ठहरा हुआ है मैने कहा नही तो ये सब अपना ही सामान है फिर उन्होने आश्वस्त होने की मुद्रा मे होते हुए अपने आपको खोलना शुरु किया मसलन मौजे उतार कर रिलेक्स हो गये और फिर मैने पहली बार उनको शार्ट्स और टी-शर्ट मे देखा साथ मे फ्रेंच कट दाढी की लुक से एकदम जोशीले नौजवान लग रहे थे हालांकि हम तीनो मे सबसे कम उम्र मेरी है लेकिन पता नही कैसे शरीर पर कुछ ज्यादा की प्रौढता छा गई है रास्ते मे राजीव ने भी मेरी उम्र का अंदाजा 35 प्लस का लगाया था जबकि मै गीता पर हाथ रख कर कसम खा कर कह सकता हूं भईया अभी केवल 28 बंसत देखे है।

सुशील जी अपने साजो समान (सेविंग आदि) के साथ बाथरुम मे जाने की तैयारी करने लगे हुए थे वें एक बार मे ही काम तमाम करने के आदी है मेरी तरह नही एक बार शौचालय फिर नहाना दो चांस तो लेने ही पडते है,बाथरुम मे जाने से पहले उन्होने सार संक्षेप मे अपनी रात्री यात्रा जिसमे उन्होने दूसरे यात्रीयों के मूतने की सुविधा हेतु गाडी रुकवाने मे अपनी निवृत्ति का किस्सा बडी रोचकता के साथ कहा साथ की 205 रुपये का छाता खरीदने की बात बताई जिस 5 रुपये के अखबार जो बारिश से बचने के लिए खरीदे थे और 200 का छाता मोलभाव के साथ खरीदा था।

अब वो बाथरुम मे चले गए थे और हम बारिश के रुकने की प्रतिक्षा मे आनंदमयी प्रार्थना कर रहे है...।

बारिश रुकने का नाम नही ले रही है हम तीनो एकदम तैयार बैठे हैं,जैसे ही बारिश हल्की हुई हम निकल पडे अब हमे सुशील जी के छाते की उपयोगिता का पता चल रहा था एक तरफ मुकेश की और दूसरी तरफ मै बीच मे सुशील जी को प्रोटोकाल देते हुए चल रहे थे मेरी काया इस छाते मे नही समा रही है हालांकि मैने कैप लगाई हुई थी सो मै कभी कभी छाते की सीमाओं से बाहर निकल जाता था त्रियुगल स्वरुप कोई अन्य जोडा हमे माल रोड नही दिखाई दिया। सुशील जी को भुख भी लगी हुई है हमने अभी तक उन्हें नही यह नही बताया था कि हम दोनो ने पंराठो का भोग लगा लिया है इसलिए खाने की बात पर हम दोनो की उदासीनता उनको बैचनी से भर देती है फिर जब हमने अपनी पेट पूजा की बात उन्हें बताई तब उन्हें हमारे साक्षी भाव का रहस्य पता चला। बारिश तेज हो रही और ठंडक बढती जा रही है और छाते के नीचे हमारी पारस्परिक निकटता भी अजीब है जिसका कोई भी अन्यथा अर्थ निकाल सकता था...ये तो मज़ाक की बात है लेकिन मज़ा आ रहा था भीगते-भीगते माल रोड पर चलने मे...। रास्ते मे कृष्णा बेकरी पर रुका गया और वहाँ से सुशील जी ने ब्राऊनी खरीदी वें पहले से ही इसे खाने के मुरीद थे क्योंकि पहले भी शिमला यात्रा के दौरान यह खा चूके थे।हम दोनो ने भी एक-एक बाईट ली और फिर बारिश मे ही निकल पडे लेकिन बारिश के तेजी देखकर हमारा सामूहिक निर्णय हुआ कि किसी एक रेस्त्रां पर रुका जाए और भागते भागते एक अच्छे रेस्त्रां मे शरण ली ज्यादा अच्छा भी नही कहा जा सकता था क्योंकि वहाँ पर लिखा था कि सेल्फ सर्विस

मीनू कार्ड मे चाय के अलावा कोई आप्शन जचां नही वह भी शायद 22/- की थी बरसाती ठंड मे चाय की चुस्कियों के साथ गर्मी पैदा करने की कोशिस मे हम तीनो अच्छी कुर्सियों पर पसर गयें।

मुकेश जी मौन है और मेरी और सुशील जी के संवाद का आनंद ले रहे है जहाँ उनको अपनी बात कहनी होती है वें लिख कर कह देते है,बातो-बातों मे एक पुरानी मित्र का जिक्र आया जिसके व्यक्तित्व के विस्तार पर मैने अपना मनोविश्लेषणात्मक पक्ष रखा लेकिन शायद मै अपनी बात ठीक ढंग़ से समझा नही पाया और बात मेरा पक्ष बनाम साम्यवाद की वर्तमान मे प्रासंगिता की तरफ मुड गई,सुशील जी सन्दर्भ के साथ बात रखते है और मैं सन्दर्भों के मामले मे एकदम गरीब उनकी किस्सागोई और बतकही का मै बडा प्रशसंक हूं वे बहुत ही रोचकता के साथ बात रखते है कोई भी बुद्दिजीवी व्यक्ति उनके सामने जल्दी ही आत्मसमर्पण की मुद्रा मे आ सकता है। खैर! उनके साम्यवादी विचारो और ऐतिहासिक सन्दर्भ मे रुसी उपन्यासों के पात्रों के माध्यम से अपनी बात कहने की गजब की शैली का मै आनंद ले रहा था और अपना ज्ञान को भी सम्पन्न कर रहा था और अब मै श्रोता की भूमिका मे आ गया था क्योंकि मुझे बहस करने की आदत भी नही है बस अपनी बात अपने ढंग से कह जरुर देता हूं।

चाय पीने के बहाने जितनी देर तक हम वहाँ बेशर्मी के साथ बैठ सकते थे....बैठे रहें फिर निकल पडे बारिश कम नही हुई है बस मन को बहला कर चल ही पडे, फिर मुकेश जी की अगुवाई मे हमारा कारवां एक कुलीन रेस्त्रां मे रुका जहाँ पर सुशील जी की भुख का सम्नान करते हुए हमने दोपहर का भोजन करने का निर्णय किया।

बाहर बारिश हो रही है और हम अंदर बैठे भोजन का मीनू तय करने मे लगे है मैने अपनी सम्पूर्ण यात्रा के लिए घोषणा कि जब कभी भी भविष्य़ मे भी मेरी पंसद का ख्याल किया जाए तो दाल मक्खनी हमेशा के लिए फिक्स कर दी जाए इसके अलावा आप जो भी कुछ चाहे मंगा सकते है मुझे कोई अतिरिक्त परिवर्तन नही करना पडेगा...इससे आप मेरे दाल प्रेम का अन्दाजा लगा सकती है घर पर खाने के मामले मे लोग मुझे दालू(दाल प्रेमी) कह भी देते हैं। आर्डर दिया गया दाल मक्खनी,मिक्स वेज़ और बटर नान वेटर के जाने के बाद हम लोग थोडी देर शांत बैठे रहे आत्म संवाद के साथ और फिर पास मे बैठे बेमेल जोडे की बैठने की मुद्राओं से लेकर अंतरंग (यौन विषयक नही) सम्बन्धो की अपने अपने ज्ञान के साथ व्याख्या करने लगे। वैसे तो वहाँ पर बैठे लोगो की कुलीनता को देखकर लग रहा था कि वें शिष्टाचारवश भोजन की अतिरिक्त रुप से प्रतिक्षा करने के आदी है लेकिन मै कतई नही हूं अगर ज्यादा देर हो जाए तो मुझे बैचेनी सी होने लगती है लेकिन यहाँ ज्यादा देर इंतजार नही करना पडा जल्दी ही खाना आ गया और सुशील जी की भुख की तीव्रता के साथ समान रुप से हम भी टूट पडें।

एक विषयांतर करते हुए आपको जानकारी देना चाहता हूं कि सुशील जी मेरे ही गांव के है सो हमारी गांव की खान-पान और जीवन शैली एवं गांव के पुराने ज्यादा खाऊं किस्म के लोगो को लेकर भी अतीत चर्चा अक्सर होती रहती है जिसका आज लुत्फ मुकेश जी भी ले रहे थे।

खाना संपन्न हुआ तो एक-एक गुलाब जामुन के कम्पलीमेंटरी डोज़ का प्रस्ताव मुकेश जी ने दिया वैसे तो वो मौन मे है लेकिन आजकल ऊर्जा के संचयन के कारण मन की वाईब्रेशन बहुत जल्दी पकड लेते है सो मैने मन ही उनका धन्यवाद दिया क्योंकि भाई देहात का आदमी हूं खाने के बाद मिट्ठा न मिले तो पूर्णता का बोध ही नही होता। गर्मा-गरम गुलाब जामुन खाने के बाद ठंड के कारण अतिरिक्त मुत्र विसर्जन की इच्छा को भी शांत किया और फिर यहाँ से निकल पडे।

मौसम ने क्या खुब मज़ाक किया हमारे साथ और मौसम ने ही नही पता एक किस मसखरी के हाथों मेरा मोबाईल नम्बर लग गया बार बार फोन कर रही है और पूछ रही है कि आपका नाम अजीत सर है ना! आप क्या करते हो,कहाँ रहते हो? और बताओं? इतने सवाल दाग रही है कि मै पस्त हो गया मुझे बिना परिचय के फोन रिसीव करने मे खास तरह की खीझ और संकोच होता है। मै बार-बार उसका परिचय और फोन करने की वजह पूछ रहा हूं वो मुझे ही चला रही है हद तो तब हो गई जब उसने कहाँ कि मैने ही उसको अपना नम्बर दिया था और वो भी गुरुकुल मे ही पढती है हालांकि वो सरासर झुठ बोल रही थी क्योंकि उसे यह ही नही पता था कि गुरुकुल अपने आप मे एक विश्वविद्यालय भी है। मैने कहा कि मै शिमला मे हूं ताकि रोमिंग का लिहाज कर अनर्गल प्रलाप बंद कर दे लेकिन उसने सवाल दाग दिया कि शिमला मे क्या हो रहा है? मैने कहा बारिश और तापमान 10 सेंटीग्रेड के आस पास है ये मेरी पहला चुस्त जुमला था जिस पर उसने वार किया कि आप साइकोलाजी पढातें है या जियोगरफी ! मेरी बोलती बंद हो गई,पता नही कौन है कभी मिस काल करती है तो कभी काल करके मेरी आवाज़ सुनती रहती है। सुशील जी और मुकेश जी दोनो मेरी लाचारगी और महिलाओं को एंटरटेन करने की कम तज़रबाकारी पर हँस रहे है,साथ ही कभी-कभी मुझ पर शक भी कर रहें है मुकेश जी ने तो एक चुस्त जुमला भी छोड दिया कि अजीत जी तो छुपे रुस्तम है कभी जिक्र तक नही किया अपने इस सम्बन्ध का! और मैं स्पष्टीकरण दे रहा हूं...हालांकि ये सब मज़ाक मे चल रहा था। हम एक चाय की दुकान पर रुके और चाय का आर्डर दिया इतने मे फिर फोन आ गया इस बार मैने फोन सुशील जी को थमा दिया क्योंकि खबरिया चैनल की भाषा मे कहूं तो वो इस तरह के मामलो के जानकार है लेकिन उसने फोन काट दिया,इसके बाद फोन भी नही आया बस एकाध मिस्स काल जरुरी आयी जिस पर मैने काल बैक नही किया और फिर चाय पी कर हंसी-मज़ाक करते हुए रुम की तरफ बढ चले लेकिन कमबख्त बारिश ने पीछा नही छोडा और हम भीगते हुए चल पडे,रास्ते मे एक छाता और खरीदने का सोचा लेकिन दुकान की मालकिन को सुशील जी का आंटी-आंटी कहना शायद पसंद नही आया और वहाँ पर सौदा नही पटा।

तेज़ बारिश को देखकर हमने सुशील जी को उनके छाते के हवाले किया और कहा अब हमे दौड लगानी ही पडेगी...इसके बाद मैने और मुकेश जी ने माल रोड से अपने रुम तक एक दौड लगाई तेज़ बारिश मे तेज़ दौडने का भी अपना एक अलग मज़ा है लेकिन मै हांफने भी लगा हूं।

खैर जैसे-तैसे रुम पर पहूंच गये और लगभग 70 प्रतिशत भीग भी गये जुते तो एक दम पानी-पानी हो गये है जल्दी ही नये कपडो के साथ लिहाफ मे पैक हो गये और बमुश्किल दस मिनट बाद सुशील जी भी पहूंच गये लेकिन वे भी भीगे हुए थे एक छाते के साथ हम तीनो का कायिक अत्याचार चलता रहा था उस बैचारे की भी एक सीमा थी लेकिन उसने साथ बहुत दिया।

इसके बाद रतिराम जी ने खाने के बारे मे पूछा हम तीनो ने एक स्वर मे मना कर दिया क्योंकि पेट मे खाने की जगह नही थी कुछ पिया जरुर जा सकता था। मैने अपना बेकद्री से पडा लेपटाप उठाया और उसमे प्राण फूंके और सुशील जी को अपना विडियोज़ के कलेक्सन दिखाना शुरु कर दिया खुब वैरायटी थी मेरे पास गज़ल,भजन,पुराने गाने,नये गाने और रागनी सब कुछ मसाला था जिसने सुशील जी का खुब मनोरंजन किया और उन्होने दाद दी मेरे कलेक्सन की और राजकपूर के पुराने गानो को देखकर उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी।

मुकेश जी ध्यान मुद्रा मे चले गये है और मै और सुशील जी लेपटाप पर गानो का मज़ा ले रहे है फिर अचानक अपनी आदतन सुशील जी ने कहा अच्छा डाक्टर साहब ! गुड नाइट और वें सोने चले गये मैने और मुकेश जी ने कुछ संवाद स्थापित किया फिर मैने कुछ मुशायरे सुने और फिर सो गया...।

आज का बहुत बडा चिट्ठा हो गया कल की बातें अगली पोस्ट में...

डा.अजीत

(नीचे तीन फोटो डाल रहा हूं .. जिससे आप हमारे नये साथी सुशील जी के दर्शन कर सके वे मुकेश जी के साथ रिज़ पर खडे है। एक मुझ आवारा का है और एक फोटो मुकेश जी की ध्यान मुद्रा का है जिसमे दिव्य अनुभूति हो रही है..।)

Tuesday, June 22, 2010

शिमला प्रवास


...एक घंटे की नींद ने हमारी सारी थकान दूर कर दी और अब हमने शहर का जायज़ा लेने का फैसला किया और अपने रुम को ताला लगा कर निकल पडे मौसम अभी साफ है लेकिन हल्की ठंडक महसूस हो रही है सो मैने अपने ट्रेक सूट के अपर को डाल लिया ताकि सर्दी न लगे, सबसे पहले हम माल रोड होते हुए रिज़ पहूंचे काफी स्पेस वाला सर्कल नुमा जगह है जिसके बारे मे मुकेश जी ने बताया कि जहाँ पर हम लोग खडे हुए है इस जगह के नीचे अंडरग्राउंड वाटर टैंक है जहाँ से पूरे शिमला मे पानी की सप्लाई होती है मुझे सुनकर आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे लग नही रहा था अंडरग्राउंड इतना बडा वाटर टैंक हो सकता है। रिज़ के बिल्कुल पास ही एक पीले रंग का पुता हुआ और पुराने वास्तुकला का नमूना शिमला का संभवत: सबसे पुराना चर्च है अभी उसी गेट पर ताला पडा हुआ था मैने अपने पापो का बाहर से ही कंफेशन किया और आगे निकल पडा। रिज़ पर चहल-पहल बहुत है लेकिन भीड है नवदम्पतियों की जो हनीमून के लिए बाहों मे बाहें डाले भावुक और रोमानटिक मूड मे घुम रहे है। चूंकि मुकेश जी ने पहले इसी शहर मे बतौर मीडियाकर्मी काम किया इसलिए उनके कुछ अपने मेल-मिलाप के लोग भी है जो एकाध हमे मिले भी फिर हम दोनो आगे बढे जा रहे है मुकेश जी एक चाय की दुकान पर रुके उन्होनें बताया जब वे अपने आफिस मे दिन-रात काम करते थे तब यह चाय की दूकान ही खबरो,अफवाहो का केन्द्र हुआ करता था, मुझे अच्छी बात यह लगी कि चाय की दूकान का मालिक बडी भावुकता के साथ मुकेश जी से मिला और न केवल दूकान का मालिक दूकान पर काम करने वाले हर कर्मचारी ने मुकेश जी से मिल कर हाल चाल पूछा जो एक बडी बात लगी क्योंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है पत्रकारिता के संबन्ध बहुत ही सतही किस्म के होते जब तक आप मैनस्ट्रीम मे होते लोग खुब सलाम ठोकते है लेकिन जैसे ही अदला-बदली हुई लोग भी आपको भूल जाते है लेकिन मुकेश जी के साथ ऐसा नही हुआ यह उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व और संवेदनशीलता का प्रतीक थी कि इस शहर के मास से लेकर क्लास तक का आदमी उनसे उसी फ्लेवर,कलेवर और तेवर के साथ पेश आये जैसे कभी तब आया करते थे जब वो वहाँ काम करते थे।

चाय की दूकान पर आग्रहपूर्वक एक चाय पी गई, यह इस शहर की पहली चार जिसमे मीठे की मात्रा ने मुझे अपने गांव की चाय दिला दी फिर मुकेश जी ने बताया कि पहाड पर लोग अधिक मीठे वाली चाय ही पंसद करते है क्योंकि इससे उनको चढाई करने के लिए ऊर्जा मिलती है। चाय वास्तव मे अच्छी थी, उसके बाद हमने अपनी राह पकड ली और मै मुकेश जी का अनुसरण करता हुआ ऊंचाईयों से गुजर रहा हूं तभी मुकेश जी ने एक घर पर दस्तक दी और एक आंटी जी ने घर का दरवाजा खोला छोटा काम्पेक्ट किस्म का लकडी का मकान है। आंटी जी को थोडा सा वक्त लगा मुकेश जी पहचानने मे लेकिन फिर वो भी बडी आत्मीयता से मिली,मुकेश जी ने बताया कि शायद कल हम लोग आप यहाँ दोपहर मे खाना खाने के लिए आए क्योंकि अपने एक और साथी कल हमे ज्वाईन करेंगे फिर उनके साथ ही आएंगे। आंटी जी ने खाने का मीनू पूछा बोली कि कल आपके लिए कढी बनाऊ क्या? अगर आपको पंसद हो तो ! मै हां कहने की सोच ही रहा था क्योंकि मुझे कढी बहुत पंसद है तभी मुकेश जी ने कह दिया कल जल्दी ही आपको सूचना दे दी जाएगी शायद दाल-सब्जी खाई जाए लेकिन हमारे आने से पहले कुछ मत बनाना।चाय के औपचारिक आग्रह को मना करके हमने विदा ली. फिर मुकेश जी ने हाथ के इशारे से अपने पुराने आफिस का बोर्ड दिखाया मैने साक्षी भाव से देखा और वापस शहर की राह पकड ली...। रिज़ पर वापस आकर हल्की बून्दी बान्दी होनी शुरु हो गई थी फिर अब थोडी सी भुख भी लगने लगी थी सो हमने भीगने से बचने और पेट को खुराक देने के लिए हिमाचल प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक रेस्टारेंट मे शरण ली, सरकारी होने के बाद भी काफी हाई प्रोफाइल किस्म का रेस्टारेंट था एकदम कुलीन और अभिजात्य शिष्टाचार वाली जगह थी जहाँ पर एक आध्यात्मिक शिक्षक मुकेश जी और मेरे जैसा भदेस छ्दम बुद्दिजीवि साधिकार एक अच्छे व्यूव वाली टेबल पर बैठ गये और बारिश का आनंद लेने लगे नेपथ्य मे आर.डी.बर्मन की मदहोश करने वाली रोमांटिक धुने बज रही थी जिसने माहौल को और भी जीवंत बना दिया था,तभी वेटर ने मीनू कार्ड पेश किया वहाँ उपलब्ध वैरायटी ने मुझे थोडा असमंजस मे डाल किया क्योंकि भुख के हिसाब से मै कोई खाने को लेकर प्रयोग नही करना चाहता था सो मैने अपने जाने पहचाने समोसे का आर्डर दे दिया मुकेश जी ने भी मेरे मौन समर्थन किया,बात लिखने मे सस्ती प्रतीत होगी आपको लेकिन समोसे के आगे लिखी कीमत 23 रुपये प्रति एक समोसा ने मेरे सारे गणित को गडबडा दिया क्योंकि मै आज पहली बार 23 रुपये का समोसा खाने जा रहा था सो इस कीमत ने भी समोसे के प्रति और जिज्ञासा बढा दी थी।

हम दोनो आर.डी.बर्मन की धुन के साथ हल्की बारिश का आनंद ले रहे थे और एक कुलीनता के अहसास के साथ लोगो से नजरे भी मिला लेते है कभी-कभी लेकिन अपने साथ होने के अहसास का मजा भी खुब आ रहा है।

शालीन वेटर ने तन्द्रा तोडी और समोसा पेश किया समोसे के आकार-प्रकार ने 23 रुपये की कीमत को जस्टीफाई कर दिया था क्योंकि मैने पहली बार इतना बडा समोसा देखा था, पहले कुलीनता की नकल करते हुए मैने छुरी कांटे से खाने का प्रयास किया लेकिन बात बनी नही सो मैने फिर अपने देशी ढंग से समोसे को चट किया वास्तव मे बहुत स्वादिष्ट समोसा था और जितनी भुख लगी हुई थी वह भी एकदम शांत हो गई थी।

बारिश भी कम पड गई है अब यहाँ निकलने की तैयारी हुई और फिर हम रिज़ से पहूंचे स्कैंडल पाईंट। मुकेश जी ने मुझे बताया कि इस जगह का नाम स्कैंडल पाईंट क्यों पडा? बात यह थी कि हमारे एक महाराजा का मन एक अंग्रेजी मेम पर आ गया और जब उसकी सुन्दरता से मोहित होकर उससे रहा नही गया तब उसने उस मेम के वक्षों को सरेआम भींच दिया था तब से इस जगह का नाम स्कैंडल पाईंट पडा क्योंकि अंग्रेजी हुकुमत के लिए यह घटना एक बडा स्कैंडल था,सजा के तौर पर महाराजा का शिमला आना प्रतिबन्धित कर दिया था जिसके जवाब मे रसिक महाराजा ने शिमला की प्रतिकृति के रुप मे चैल नामक शहर बसाया। मुझे फक्र हुआ अपने उस महाराजा पर जिद हो तो ऐसी।

फिर हम इडिंयन काफी हाऊस पहूंचे जहाँ शहर के पत्रकारों,लेखको और बुद्दिजिवी लोगो का जमावडा लगा रहता है शहर की तुलना मे यहाँ खाने पीने की चीजे भी सस्ती है लेकिन भीड खुब रहती है। बाहर की ठंडक के बाद अंदर बैठकर थोडी गर्माहट महसूस हुई और हमने एक-एक प्लेट वडा-सांभर खाया यह भी खाने मे ठीक था वैसे व्यक्तिगत रुप से मुझे साऊथ इंडियन डिश ज्यादा पंसद नही है।

यहाँ के बाद हमने शहर के माल रोड का एक चक्कर लगाया धीरे-धीरे शाम होती जा रही है और शाम की रोमानियत और भी बढती जा रही है युगल दम्पंतियो को देखकर मन मे रोमांस पैदा हो रहा है लेकिन मन अकेला बावरा हल्की-हल्की बारिश फिर शुरु हो गई अब हम अपने रुम पर लौटने की तैयारी है सो अब हमने खाने-पीने का सामान लिया और रुम की तरफ बढ चले रास्ते बारिश और भी तेज हो गई है अब हमने एक दौड लगाई वरना ज्यादा ही भीग जाते। यदि आप कभी शिमला जाने का कार्यक्रम बनाए तो रेनकोट और छाते का इंतजाम जरुर कर लें क्योंकि कब बारिश शुरु हो जाए किसी को पता नही होता।

भागते-भागते रुम पर पहूंचे थोडे भीग भी गये है, यहाँ गेस्ट हाऊस पर एक सेवक है जिनका नाम रतिराम जी बडे ही भले मानस और सेवक शब्द को चरितार्थ करने वाले है हालांकि खाने के लिए पहले बोलना होता है तभी वो बनाते है लेकिन जब हम निकले थे तब वे नही थे सो हमने नही बोला फिर भी उन्होने बताया कि एक-एक प्लेट दाल-भात का जुगाड हो जाएगा हमारे लिए इतना काफी था क्योंकि माल रोड पर हमने गुलाब जामुन और कृष्णा बेकरी के कुरकेज़(यही नाम मुझे याद रहा है पता नही सही है या नही) खा चूके थे सो इतनी ज्यादा भुख भी नही थी एक संवाद सत्र के बाद हमने दाल-भात खायी और कल जो अपने एक और मित्र डा.सुशील उपाध्याय जी देहरादून से आने वाले है उनके आने के कार्यक्रम की पुष्टि के लिए उनके साथ एसएमएस बाजी हुई उन्होने बताया कि वे कल सुबह हर हालत मे 9 बजे तक पहूंच रहे है सो अब मन खुश हुआ और सोने के लिए लिहाफ खींच लिए जून के महीने मे लिहाफ मे सोने का जो सुख है वह बताया नही जा सकता है। हाँ लिहाफ मे अकेले गर्माहट पैदा करना अच्छा नही लग रहा है...कोई.....! थकान भी है सो उसी को संगनि बना कर और हनीमून कपलस से जलन करते करते कब नींद आ गई पता ही नही चला...।

कल की आवारागर्दी का किस्सा कल ही बताऊंगा......।

डा.अजीत

Friday, June 18, 2010

शिमला: पुराने शहर मे नये लोग


टैक्सीवाले ने हमें लक्कड बाजार उतारा नाम मुझे भी सुनने मे अजीब सा लगा था शायद आपके जेहन मे लक्कडों के ढेर का बाजार जैसी तस्वीर उभरी होगी लेकिन हकीकत मे मैने वहाँ कोई लक्कड नही देखा...लक्कडबाजार मे दो फक्कड...आगाज़ तो अच्छा था अब अंजाम के बारे मे क्या सोचना..। मेरी यह शिमला की दूसरी यात्रा है पहली बार तो बस शहर से गुजर गया था किसी पुरानी प्रेमिका की चूम्मी लेकर जैसे आगे निकल गया हूं तब मुझे नारकंडा जाना था,लेकिन आज पहली बार अपने साथ होकर इस शहर मे आया हूं।मेरे लिए सबकुछ अनजाना है इस शहर मे लेकिन धीरे-धीरे जानने की एक बाल जिज्ञासा पैदा होती जा रही है। मैने मुकेश जी का अनुसरण करना शुरु किया क्योंकि वो पहले इस शहर मे 6-8 महीने गुजार चूके है एक प्रमुख समाचार पत्रिका मे बतौर सीनियर कापी संपादक काम भी किया था उन्होनें सो उनके लिए यह शहर अनजाना नही है। हमने ऊपर की तरफ चढना शुरु किया एक तिब्बती बाजार है बडा ही संकरा सा मार्ग है ऊपर की तरफ जाने के लिए मुकेश जी ने मुझे लिख कर बताया कि पहले हमे माल रोड जाना होगा यह उसका रास्ता है। मै पीठ पर बैग लादे और एक हाथ मे लेपटाप पकडे पीछे पीछे चला जा रहा था इसी बीच कुछ स्थानीय लोग हमारी पर्यटक चेहरे और सामान देखकर बार- बार साथ चलते हुए आफर भी दे रहे हैं साहब! होटल चाहिए तो बताओं,सामान के लिए पिट्ठू भी बार-बार टोकते है, मुकेश जी मौन मे है और मैने मौन मे होने का प्रपंच कर लिया है आखिर यही एक रास्ता था उनके प्रस्तावों से बचने का। कई बार मुझे लगा कि दैत्याकार काया और पर्याप्त चर्बी होने के बाद भी यदि यें लोग मुझको अपना सामान ढोने के लिए असमर्थ समझतें है तो यह मेरे लिए सोचने वाली बात हैं,लेकिन जल्द ही मैने अपने आप को समझा लिया कि हो सकता है कि अभिजात्य वर्ग के मुसटंडे अपनी नवविवाहित पत्नियों के समक्ष अपना सामान उठाना मे अपनी तौहीन समझते हो सो ये लोग अभ्यस्त हो मेरे जैसे चेहरो के बीच अपने ग्राहक होने की संभावना ढूडनें की...अब चेहरे और रंग से भले ही कुलीन होने की छदम छवि भी बनती हो लेकिन मै ठहरा ठेठ भदेस...छदम बुद्दिजीवि देहाती जो इस कुलीन शहर मे खानाबदोशी के लिए आया है। जब कभी मैं लोगो के होटल और पिट्ठू के प्रस्तावों से खीझने लगता हूं तब मै अपना चिरपरचित पुराना आजमाया नुस्खा आजमाता हूं..ठेठ अपनी देहाती मुजफ्फरनगरी बोली मे बोलना शुरु कर देता हूं फिर लोगो के चेहरे पर यह भाव कि कोई जींस-शर्ट और चशमा लगाने भर से लोग कुलीन और सभ्य होंगे इसकी कोई पक्की गारंटी नही होती,यह भाव देखकर मुझे एक अजीब सा सुख मिलता है पता नही क्यों? सबकुछ जानकर अंजान होने का प्रपंच और भदेस,भोला बन जाने मे मुझे खुशी मिलती है।

माल रोड पर हम लोग पहूंच गये है...पहली बार पहाड पर होने का अहसास हुआ है क्योंकि मै हांफ रहा था हालांकि हम दोनो अपनी गति से चल रहे थे लेकिन भारी होने के पहाड पर नुकसान का पहली बार बोध हुआ। मुकेश जी ने माल रोड पर पहूंचते ही अपने मौन मार्ग मे अपनी भूमिका बदली और वें मेरे इस शहर के गाईड बन गये है उन्होने शहर के माल रोड के इतिहास के बारे मे मुझे संक्षिप्त मे बताया कि कैसे अंग्रेजो ने माल रोड को बनाया था,लेकिन हम दोनो ही जल्दी ही बाडी को रिचार्ज करना चाह रहे थे रास्ते का हाल तो मैने आपको बता ही दिया था, मुझे भी मानसिक थकान हो रही है। इस यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है भले ही मुकेश जी मौन मे है लेकिन हमारी दोनो की परस्पर वाईब्रेशन इतनी मैच कर रही है कि एक दूसरे को अपनी बात कहनी नही पढ रही है बात कहने से पहले ही परस्पर पहूंच जाती है जिससे एक सुविधा और सहजता बनी रही है।

मुकेश जी ने बताया कि पहले हम संस्कृति मंत्रालय के गेस्ट हाउस पहूंचना है जहाँ पर पहले से मुकेश जी ने बुकिंग कराई हुई है...मंद-मंद और थके हुए कदमो से हम गेस्ट हाउस की तरफ बढे जा रहे है,शरीर की थकान पर उर्जा की बौछार सी लगती है जब किसी नवविवाहित युगल दम्पत्ति को बाहों मे बाहें डाले रोमानटिकता के बोध के साथ अपने करीब से गुजरता हुआ देखता हूं... और कभी कभी खुद के निष्ठुर पति होने के ग्लानि भी..याद नही आता कभी पत्नि को इस भाव के साथ घुमाया हो.., बस खुद ही खानाबदोशी की और पत्नि को बाध्य किया अपने इस स्वरुप मे स्वीकारनें के लिए...! खैर! छोडिए बात निजि होती जा रही है।

हम गेस्ट हाउस पहूंच गये है यह शिमला के मौसम विभाग के दफ्तर के ठीक सामने है,पहूंचने पर ज्यादा औपचारिकताएं नही करनी पडी है सीधे कमरे मे जाकर बेतरतीब ढंग से सामान को बिखरा कर कमर सीधे करने लगे।

अभी यह तय हुआ है कि फ्रेश होकर थोडा सोया जाएगा ताकि रात की थकान से मुक्ति मिले..मुकेश जी ने अपने बैग से दो चादरे निकाल दी है मैने और मुकेश जी ने अपनी-अपनी चादरें तानी और सुस्ताने लगें...। कमरे की रोशनी इज़ाजत नही देती है कि सोया जाए लेकिन हमने उसको मात देकर 1 घंटे की नींद ले ही ली...। अब तरोताज़ा महसूस कर रहे हैं और साथ मे तैयारी भी शहर का एक चक्कर लगाने की भी...।

अब एक विराम लेता हूं आप भी तैयार हो जाएं मेरी नज़र से शहर देखने के लिए...।

डा.अजीत

Wednesday, June 16, 2010

सफर: चंडीगढ से शिमला















(
माफी चाहूंगा दोस्तों बीच मे यह यात्रा कथा क्रम टूट गया था जिसके कारण आपको असुविधा तथा निराशा हुई होगी। वजह दो रही है एक तो मैं शिमला से लौटने के बाद ऐसे निर्जन स्थान पर चला गया था वहाँ किसी भी प्रकार के संचार-सूचना के साधन नही थे और कुछ मैं यात्राओं मे इतना मशगुल हो गया था कि प्रमादवश लिखने का मन भी नही हुआ,लेकिन मेरे जेहन मे सब कुछ मौजुद है जैसा भी मेरा तज़रबा रहा इस सफर का,अब किस्तो मे आपके साथ बांटता चलूंगा आपको भी भी शायद रोचक लगे...।)

...बात वही से शुरु करता हूं जहां से छोडी थी रात के ढाई बजे चंडीगढ पहूंचने के बाद वहां पर घटित हुए नाटकीय घटनाक्रम के बाद हम तीनो ने चंडीगढ से टैक्सी से ही रवानगी ली। आगे वाली सीट पर राजीव जी ने आसन ग्रहण किया और हम दोनो पीछे वाली सीट पर विराजमान हो गये,चूंकि मै मनोविज्ञान की मास्टरी करता हूं और मुकेश जी ध्यानमार्ग के साधक इसलिए दोनो ने एक स्वर मे यह जान लिए कि राजीव के अन्दर नेतृत्व करने का छिपा हुआ कीडा है जो धीरे-धीरे सामने आने लगा सो हम दोनो ने मौन निर्णय किया कि राजीव को ये जिम्मेदारी दे दी जाए कि हमे आनन्दपूर्वक शिमला तक पहूंचा दे सो हम दोनो रिलेक्स मुद्रा मे आ गये। राजीव ने हमारा परिचय पूछा मैने बताया कि मै विश्वविद्यालय मे मनोविज्ञान विषय की मास्टरी करता हूं और मुकेश जी ने राष्ट्रीय सहारा के वरिष्ठ पत्रकार के पेशे को त्यागकर ध्यानमार्ग का चयन किया है जिस पर उसको आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता हुई। मुकेश जी के मौन मे उसकी जिज्ञासा बढती जा रही थी और मुझ पर सवालो की बौछार क्योंकि मुकेश जी तो मौन मे है जो जान ही चूका था सो यहाँ इस यात्रा मे मेरी भूमिका मुकेश जी के व्याख्याता के रुप मे हो गई, उसकी जिज्ञासाएं और सवालो की आवृति और गंभीरता उत्तरोत्तर बढती ही गई। इसी क्रम मे,मै आपको राजीव के बारे मे बता दूं जैसाकि उसने बताया कि वह दिल्ली का रहने वाला है रेडीमेड गारमेंट का अपना बिजनेस है मैन्यूफैक्चरर है और उसके माल की सप्लाई पूरे हिमाचल प्रदेश मे होती है अपने बिजनेस पार्टीयों से मुलाकात और वसूली के सिलसिले मे वह हिमाचल प्रदेश की यात्रा पर है।

वह भी श्री श्री रविशंकर का चेला है और आर्ट आफ लिविंग के शिविर मे जाता है उसने ने एकाध बार एकदिनी मौन साधना का प्रयास किया पत्नि को बाधा मानता है मौन व्रत करने के लिए।

वेद,दर्शन,मनोविज्ञान,उपनिषद,संस्कृत,नैतिकता और धर्म के तात्विक पक्ष उसके बातचीत के प्रिय विषय है अब आप मेरी स्थिति का खुद अन्दाजा लगा सकते है कि मुकेश जी के मौन मे होने के कारण मैने कैसे उसकी जिज्ञासाओं को शांत किया होगा? बडा ही मजेदार और नया अनुभव था मेरे लिए यह क्योंकि मै अधिकारपूर्वक तो केवल मनोविज्ञान विषय पर ही बोल सकता है लेकिन फिर भी उपरोक्त विषयों पर जितना अल्पज्ञान था मैने अपनी पूरी उर्जा से तर्क सम्मत ढंग से संतुष्ट करने का प्रयास किया,लेकिन जिस गति से सवाल करता था वह भिन्न-भिन्न विषयों पर एक साथ मुझे भी कई बार सोचना पड जाता था। सबसे ज्यादा दिक्कत मै मुकेश जी को लेकर उसके सवालो पर महसूस कर रहा था क्योंकि मुझे उनके मार्ग की व्याख्या करनी होती थी वह भी बडी सावधानी के साथ कंही कुछ अतियुक्ति न हो जाए, बीच-बीच मे मुकेश जी भी मेरा सहयोग कर रहे थें जब सवाल उनसे सम्बन्धित होते थे वे अपना संक्षिप्त पक्ष लिख कर मुझे बता देते थे लेकिन वह विस्तार मे जाना चाहता था जिसके लिए मुझे व्याख्या करनी होती थी।

चूंकि वह नियमित रुप से हिमाचल आता जाता रहा है इसलिए उसकी टैक्सी ड्राईवर से खुब पटनी शुरु हो गई उनकी बातों के प्रमुख विषय हिमाचल के रास्ते,प्रमुख ढाबे,पुलिस और रिसोर्ट आदि थे हम जिन्हे साक्षी भाव से सुन रहे थे।

इस टैक्सी का ड्राईवर भी एक अजीब ही कैरेक्टर था हम जो भी बात करते थे वह उनमे खुद ही शामिल हो जाता था बात चाहे हिमाचल की करें या दिल्ली मैटरो की वह ऐसा प्रतीत करवा देता था कि कोई भी विषय उसकी जानकारी से परे नही है।

राजीव के सम्बोधन मे हमारे नाम ऐसे शामिल हो गये थे जैसे कि बरसो से हमारी जान पहचान हो।राजीव और ड्राईवर की बातचीत से यह साफ पता चल रहा था कि उनको चंडीगढ-शिमला मार्ग के ऐसी जगहो की बखुबी जानकारी थी कि जहाँ स्वादिष्ट खाना मिलता है,मसलन दोनो ही चटोरे थे।

इसी बीच राजीव ने अधिकार के साथ प्रस्ताव रखा कि मुकेश मै आप लोगो को ऐसी जगह परांठो का नाश्ता कराऊंगा कि आप याद रखेंगे वहाँ के स्वाद को जिन्दगी भर। रात भर के सफर मे और उसकी थकान के बीच इस प्रस्ताव ने हमारे चेहरो पर चमक और ताजगी दोनो पैदा कर दी और मौन स्वीकृति भी एक स्वर हमने दी,फिर उसने ड्राईवर से उस ढाबे की पुष्टि भी की तो हम और भी आश्वस्त हो गये। रास्ते मे एक जगह रुककर चाय पी वह भी डबल डोज के साथ यह सोलन के आस-पास की कोई जगह थी वही पर मूत्र-विर्जन भी किया गया पहली बार। इसके बाद हम हर उस ढाबे को उत्सुकता की नज़र से देखते जहाँ राजीव थोडा सा भी सक्रिय होता था क्योंकि उसके प्रस्ताव का मनोवैज्ञानिक प्रभाव हमारी भुख के सन्दर्भ मे समान रुप से हो रहा था,लेकिन थोडी खीज़ इस बात पर बढती जा रही थी कि वह कोई भी ढाबे के निकल जाने पर ड्राईवर से कहता था कि अरे ! आपने वहाँ नही गाडी रोकी, फिर कहता चलो आगे देखेंगे।

आखिर वह घडी आ ही गई उसने हिमानी रिसोर्ट पर गाडी अधिकार के साथ रुकवा दी और बोला चलो पहले फ्रेश हो लेते है फिर नाश्ता करेंगे। हम भी अधिकार के साथ उस तीन सितारा रिसोर्ट की लाबी मे अपनी बारी की प्रतिक्षा करने लगे और वहाँ बिखरी हुई पत्रिकाओं को पलटने लगे लेकिन नजर परांठो पर ही लगी हुई थी पेट मे भी जठराग्नी रस ने अपना काम शुरु कर दिया और भुख बढती ही जा रही थी,फिर बारी-बारी से हम तीनो कुलीन शौचालय मे फ्रेश हो गये।

मै और मुकेश जी राजीव की बाहर खडे इस प्रत्याशा मे इंतजार कर रहे थे कि वह आये और कहे कि चलो नाश्ता तैयार है कर लेते हैं। अब राजीव बाहर आया और अप्रत्याशित रुप से आकर हमसे कहा कि यहाँ ठीक नही है कही आगे चलकर नाश्ता करेंगे यह बात बाहर खडा गार्ड भी सुन रहा था इस पर वह राजीव से बोला साहब नाश्ता तैयार है आप ऐसे नही जा सकते है यह कोई धर्मशाला या बस अड्डा नही है जो यूं ही फ्रेश हो कर चल पडोगे ,हम भी बेशर्मी से सब बात सुन रहे थे लेकिन चुप थे मुकेश जी की तरह मै भी मौन हो गया था और थोडा असहज भी क्योंकि बडे ही अधिकार से फ्रेश हुए थे हम दोनो, फिर वह अन्दर गया और मैनेजर से बात करके सहजतापूर्वक बाहर आ गया और ड्राईवर से कहा गाडी निकालो ! अब हमे लगने लगा कि यह इस तरह से हगने-मूतने के मामलो का एक्सपर्ट है क्योंकि वह बहुत सहज़ था।

लेकिन पेट की भी फिक्र हो रही थी थोडी देर तक गाडी मे सन्नाटा पसरा रहा और फिर अंतत: उसने एक सडक किनारे वाले ढाबे पर गाडी रुकवा ही दी,जहाँ पर हम तीनो ने नाश्ता किया उसने जैसे ही मीनू कार्ड से चयन की सुविधा दी मैने मुकेश जी की मौन सहमति के साथ आलू-प्याज़ के परांठो का आर्डर दिया दही के साथ, मुकेश जी ने परांठो से पहले नींबू पानी और बाद मे चाय का क्रिएटिव आउटपुट जोडा जिससे मेरा मन प्रसन्न हो गया। राजीव ने भी हमारा अनुसरण किया और 191/- के बिल का भुगतान किया,हम दोनो ने औपचारिकतावश बिल देने का आग्रह किया लेकिन उसने मना कर दिया वैसे भी हमारा मन तो कतई नही था बिल देने का क्योंकि इतना तडफा के नाश्ता करवाया था उसने शायद वह हमारे धैर्य की परीक्षा ले रहा था।

नाश्ता करते-करते हुए राजीव ने अपने पिता की कैंसर से लडी जंग का किस्सा सुनाया कि आंत का कैंसर होने के बाद भी कैसे वे उससे लड कर आ निरोग जीवन बिता रहे हैं,मैने इस प्ररेणादायक घटना और राजीव के पिताजी के साहस की तारीफ की तो मुकेश जी ने उन्हें अपने पिता के अनुभवों पर एक किताब लिखने का सुझाव दिया।

इसके बाद हम शिमला की तरफ बढे जा रहे थे,इसी बीच राजीव ने हमारे समक्ष एक आफर रखा कि यदि कभी जून के बाद एकाध महीने के लिए मनाली रुकना हो तो वहाँ पर उसका अपनी लीज़ पर लिया हुआ मकान है जिसमे रुका जा सकता है,हमने कोई अतिरिक्त उत्साह वाली प्रतिक्रिया नही दिखाई जिसकी उसे पक्की उम्मीद थी। मैने कहा अगर जरुरत होगी तो आपको जरुर याद किया जाएगा जिससे वह भी संतुष्ट हो गया।

इसके बाद हम तीनो ने झपकियाँ ली और हमारी आंखे शिमला मे जाकर ही खुली जब ड्राईवर ने कहा साहब ! आपको किस जगह जाना है? मुकेश जी ने मुझे सूचित किया मैने बता दिया। इसके बाद फोन पर सम्पर्क मे रहने के परिपक्व भावुक वायदे हुए उसके लिए हम जैसे लोगे अजूबे से कम नही थे...बेपरवाह और खानाबदोश।

शिमला पहूंच गये हैं ,यहाँ कि किस्सागोई एक विराम के बाद...।

डा.अजीत

Thursday, June 10, 2010

चंडीगढ से शिमला

इस जिन्दादिल शहर चंडीगढ के बस अड्डे पर फैली हुई भीड वो भी शिमला जाने वाली को देखकर मेरा मन थोडा सा निराश हुआ लेकिन बाद मे सोचा गर्मी की वजह से शायद यह भीड शिमला की ठंडी वादियों मे जाना चाहती है। हम दोनो लोग भीड मे अपने लिए बैठने की जगह तलाश रहे है लोग-बाग बोरो की तरह यहाँ-वहाँ फैले पडे हुए है,इंतजार को अंतिम विकल्प मानते हुए हमने दो सीट कब्जा ही ली,तभी मुकेश जी ने चाय पीने की इच्छा का सांकेतिक इशारा किया तो मैने भी सहमति मे गर्दन हिला दी लेकिन हमे यह नही पता था कि हमारे पास मे बैठी एक पंजाबी लडकी मुकेश जी के मौन के संकेतो को गौर से देख रही थी, जैसे ही मुकेश जी चाय लेने के गये उसने तपाक से निसंकोच मुझ से वही सवाल दाग दिया कि, ये अंकल(मुकेश जी) जन्म से ही ऐसे हैं(मूक बधिर) या फिर किसी हादसे के बाद इनका यह हाल हुआ है मुझे इस बालप्रश्न पर हँसी आई और मैने उसको समझाते हुए कहा कि नही यें मौन व्रत मे है आजकल बस बोलते नही है बाकि अपनी बात लिख कर बता देते है,कान्वेंट स्कूल मे पढी लडकी भला कैसे यकीन कर सकती थी कि मौन जैसी कोई साधना हो सकती है अलबत्ता उसे तो साधना का भी नही पता था,फिर भी वो समझने का अभिनय करती हुई बोली अच्छा कोई नाम-दान(सत्संग) ले रखा है अंकल ने शायद, मैने आधी सहमति मे सिर हिला दिया क्योंकि मै उसको नही समझा सकता था कि मौन क्या है?

इतने मे मुकेश जी चाय की प्यालियों के साथ आ गये और हम अपनी अपनी चुस्कियों मे मशगूल हो गये चाय बहुत अच्छी थी,इसी हमारे पास बैठी लडकी की बहन भी उसके पास आ गई उसने उसको भी मुकेश जी के बारे ठीक उतने उत्साह के साथ बताया कि जैसाकि उसने अभी एक आठंवा अजूबा देखा हो उसी की तरह उसकी बहन की जिज्ञासा भी मुकेश जी के बारे और अधिक जानने की हो गई,चूंकि मै एक माध्यम की भूमिका निबाह रहा था सो उन दोनो बहनों ने मुझसे आग्रह किया वे मुकेश जी से बात करना चाहती है और जानना चाहती है कि आखिर ये मौन व्रत किस किस्म की बीमारी है!

मैने मुकेश जी से उनकी मंशा बता दी फिर मुकेश जी ने पैड-पैन के माध्यम से बहुत ही सरल और संक्षिप्त रुप से ध्यान और मौन को परिभाषित किया जिसे वें समझनें की कोशिस भी कर रही थी, इसी बीच पास की कुर्सीयों पर एक आवरा किस्म के लडको का जमावडा लग चूका था जिन्हें यह नागवार गुजर रहा था कि उनके समान दो अजनबी मुसाफिरों से लडकिय़ां बडी आत्मीयता से बात कर रही है बाल जिज्ञासु की तरह से...। मुकेश जी अभी लिख ही रहे थे कि उन आवारा लडको ने कमेंट पास करने शुरु कर दिए कि हमारा भी इंटरव्यूव ले लो जर्नलिस्ट जी, लगता है इलैक्ट्रानिक मशीन ये तो...आदि-आदि।

मै उनको उपेक्षाभाव से बैठा देखता रहा और मुकेश जी ने केवल मुस्कान से उनके व्यंग्यबाणों का जवाब दिया,लेकिन उनमे से एक लडकी बहुत असहज हो गई थी उसने मुझसे कहा कि आप अंकल को यहाँ से उठने के लिए कह दो ये लडके बदतमिज़ किस्म के है हमे अच्छा नही लग रहा है ये सब मैने कहा हमे कोई फर्क नही पडता क्योंकि यह भी मौन साधना का ही एक हिस्सा है अपने को प्रतिक्रिया शून्य स्थिति रखना ही पडता है लेकिन वो बदमाश लडके अपनी हरकतो से बाज़ नही आए कुछ न कुछ बोलते ही रहे हमने उनको पूर्णत: उपेक्षित कर दिया,लेकिन लडकियों की सहजता को बचाने के लिए हमने वो जगह तत्काल छोड दी।

फिर हमे लगने लगा और अस्तित्व ने भी एक प्ररेणा दी कि हमारा बस से शिमला जाना संभव नही हो पाएगा क्योंकि दो घंटे बीत जाने के बाद भी कोई बस नही आई थी और भीड बढती ही जा रही थी,हमने निर्णय किया की टैक्सी के विकल्प पर विचार करना पडेगा फिर हम दोनो बाहर टैक्सी स्टैंड पर गये मैने किराया आदि पुछा तो एक टैक्सीवाले ने प्राइसटैग की तरह जवाब दिया 1840/- रुपये लगेंगे। हम दोनो वापस बस स्टैंड की तरफ लौटने लगे क्योंकि इतना किराया हमे वाजिब नही लगा था और हमारी जेब भी इतना बडे दिल का होने की इज़ाजत नही देती थी।

फिर मुकेश जी ने प्रस्ताव रखा कि यदि हमे दो और साथी मुसाफिर शिमला जाने वाले मिल जाए तो टैक्सी का किराया दिया जा सकता है शेयर करके मुझे भी यह बात ठीक ही लगी,लेकिन सवाल यह खडा हुआ है कि इतनी भीड मे यह प्रस्ताव कैसे रखा जाए कि दो भाई लोग जो शिमला जाना चाहते हो हमारे साथ आ जाओं हमारे पास टैक्सी का विकल्प है।

थोडी देर तक भीड मे असहज रुप से घुमतें रहे कभी किसी बौद्दिक यात्री तो कभी किसी विदेशी पर्य़टक की तलाश जो हमारे आकर्षक और व्यवहारिक प्रस्ताव मे सहयोग कर सकें, तभी मुकेश जी ने जो निर्णय लिया वह निसंदेह बडे साहस का था कम से कम मै अकेले ऐसा कभी नही कर पाता,उनके यात्रा के अनुभवों और परिपक्वता का मै कायल हो गया था, बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था मुझे उन्होनें क्या किया उसके बार मे मै लिख नही रहा हूं आप जो यह चित्र देख रहे है यह टैग लगा कर मुकेश जी खुद शिमला जाने वाली भीड के बीच पहूंच गये..।

इसके बाद तीन लोग सामने आएं और कुछ ने हमे दलाल भी समझा लेकिन उनकी क्या बात करनी वो तीन लोग और हम उसी टैक्सी वाले के पास पहूंच गये जिसने 1840/- मे सौदा तय किया था और वो चलने के लिए तैयार हो गया लेकिन थोडी चलने के बाद कहने लगा कि पांच आदमी हो गये है इसलिए बडी गाडी लेनी पडेगी.बाहर एक दो टैक्सी स्टैंड पर हमको घुमाने के बाद उसने कहा कि 2500/- मे क्वालिस गाडी जा सकती है जिस पर हम पांचो एक स्वर से असहमत थें हमने उससे कहा कि हमे फिर से बस अड्डे पर छोड दे,इसके बाद का नेतृत्व हमारे बीच के आदमी जिसका नाम राजीव था जो दिल्लीवासी था के हाथों मे सौफ दिया उसमे एकाध फोन किए और हमे आश्वस्त किया कि गाडी का जुगाड हो जाएगा, हम फिर से बस अड्डे पहूंच गये। इसके बाद राजीव ने खुद एक टैक्सी इंडिका वाले से बात की वो 1600/- मे तैयार हुआ लेकिन संयोग हमारे दो अन्य साथी जो साथ जाने वाले थे वे हमारा साथ छोड गये। इसके बाद हमने फैसला किया हम तीन ही जाएंगे मै,मुकेश जी और नया साथी राजीव जिसने हमारा जाने का तनाव अपने उपर ले लिया था। हम तीनो ने तय किय हम तीनो ही शेयर डाल कर 1600/- मे यह गाडी लेकर शिमला जाएंगे,हम चल पडे है और इसी बीच दिन भी निकल रहा है...। रास्ते की बातें अगली बार....अभी इतना ही क्योंकि मै भी थक सा गया हूं...किस्से बहुत से है इंतजार कीजिए...।डा.अजीत


देहरादून से शिमला-प्रथम

अब वो वक्त आ ही गया जब कूच करना शिमला के लिए मै जैसे ही मुकेश जी के पास पहूंचा तब वो मैगी का भोग लगा रहे थे और पास मे तैयार रखा बैग यह बता रहा था कि उनकी पूरी तैयारी है बस अब कुछ ही पलो मे हमे निकलना है मैने भी थोडा मैगी का भोग लगाया और चाय की प्याली पी फिर हम दोनो ने यात्रा की रुपरेखा पर संक्षिप्त चर्चा की पेपर पैड के माध्यम से क्योंकि यह मै पहले भी बता चूका हूं कि मुकेश जी आजकल मौन मे है वे केवल पेपर-पैड या अपने मोबाईल के राईट मैसज़ बाक्स के माध्यम से अपनी बात कहते है।

मेरे लिए यह एक नई चुनौति थी कि मुझे अपने एक ऐसे मित्र के साथ सफर तय करना था जिनसे मेरी अक्सर लम्बी बातें होती थी और अब वे मेरे साथ चलेंगे वह मौन अवस्था मे।हालांकि उन्होने चलने से पहले मुझसे कह दिया था कि अब वो केवल मेरा बिना शर्त अनुसरण करेंगे, शिमला पहूंचने तक के सभी निर्णय मुझे ही लेने होंगे।

घर से निकलते वक्त तय यह हुआ था कि बस अड्डे तक पहूंचने के लिए पब्लिक ट्रांसपार्ट लिया जाएगा लेकिन घर से मुख्य रोड तक आते-आते विचार बदल गया और आटो रिक्शा लेने का निर्णय हुआ, जल्दी ही एक आटो मिल भी गया उसने 80 रुपये मांगे और सौदा 60 मे पट गया लगभग 20 मिनट मे हम लोग आईएसबीटी देहरादून पहूंच गये,वहाँ पूछताछ से पता चला कि रात के 9 बजे चंडीगढ के लिए बस जाएगी। हम लोग बस के इंतजार मे बैठे रहे और जैसे ही बस प्लेटफार्म पर लगी हमने अपनी सीट सुरक्षित कर ली तथा बैग आदि फिट कर दिए,मैने मुकेश जी को वही रुकने के लिए कहा और खुद नीचे जाकर कंडक्टर से टिकिट ले आया। ठीक 9 बजे बस ने अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान किया तब तक हमारे बीच कम ही संवाद हुआ वह भी एसएमएस के माध्यम से साथी यात्री हम दोनो बडी ही कौतुहल भरी निगाहों से देख रहे थे क्योंकि केवल मै ही बोल रहा था मुकेश जी सहमति असहमति मे गर्दन हिला देते थे या मैसज़ करके जवाब देते थे।

संभवत: अनापेक्षित रुपसे कई बार लोग मुकेश जी के मौन का अर्थ यह लगा लेते है कि वें जन्मजात मूक बधिर है या किसी हादसे का शिकार होकर उनकी ऐसी स्थिति बनी हुई है।

बस तेज गति से चली जा रही है सहारनपुर तक मार्ग के साथ एक खास किस्म का अपनापन बना रहा सो पता ही नही चला रास्ता कैसे कट गया। बस जैसे ही यमुनानगर से आगे निकली हम दोनो की भुख के कारण कमोबेश एक जैसी हालत बनी हुई है और गाडी की जिस गति से ड्राईवर चला रहा है उससे लग रहा है कि उसको भी भुख हमारे जैसे ही लगी हुई है और वह भी जल्दी ही ढाबे पर पहूंचना चाहता है सो दौडा रहा है बेहिसाब।

गाडी रुकी हम उतरे और जल्दी ही भीड का हिस्सा बन कर रोटी के लिए आर्डर देने लगे भीड बहुत ज्यादा है और खाने की क्वालिटी भी औसत से भी कम है,दाल रोटी का आर्डर मैने दे दिया मुकेश जी ने सहमति जताई साथ मे चना मसाला और जोडा उन्होनें जोकि मुझे तो उतना पसंद भी नही है और वहाँ की स्थिति देखकर नही लगता कि बढिया क्वालिटी का होगा भी,खैर थोडी ही देर मे मारा मारी के बीच थाली हम तक पहूंची और हम खाने पर टूट पडे,गांव की एक कहावत है कि भुख मे गुल्लर भी पकवान लगते है ठीक यही हालत हमारी थी।

खाने की ज्यादा चर्चा क्या करुं बस एक रोचक बात बात आपको बताता चलूं एक बार मुकेश जी ने थोडी अतिरिक्त दाल मांगी तो ढाबे के मालिक ने कहा एक फुल प्लेट दाल दो उन्होनें हाथ से इशारा किया कि थोडी सी ही चाहिए फुल प्लेट नही, मुकेश जी की सांकेतिक भाषा से उसने भी वही समझा जो अन्य सामान्य लोग समझ रहे थे कि शायद बेचारा मूक बधिर है सो उसने करुणा,सहानुभूति के भाव के साथ दाल की फुल प्लेट भिजवा दी इस भाव के साथ कि दे दो बेचारे को!

खैर! हमने खाना खत्म किया और बिल का भुगतान मुकेश जी ने किया ढाबे के मालिक ने उस अतिरिक्त दाल का पैसा हमसे नही लिया,हम मन ही मन मुस्कुरा रहे थें कि विश्व गुरु भारत और अध्यात्म के बडे केन्द्र इस देश मे आज भी मौन और मूक बधिरता मे कोई खास अंतर नही हो पाता है।

गाडी ने हार्न बजाया हम जल्दी से मुत्र विसर्जन की प्रक्रिया से निवृत हुए और अपनी सीट पर विराजमान हो गये है। रास्ते मे हल्की-हल्की सी नींद की झपकियां आ रही है मुझे तो बस मे नींद नही आती है ठीक ऐसी ही हालत मुकेश जी की भी बनी हुई है लेकिन हमारी जैसे ही तन्द्रा टूटी डेरा बस्सी आ चूका था और फिर जल्दी हम लोग चडीगढ के सेक्टर-17 वाले बस अड्डे पर पहूंच गये।

यहा से सिटी बस पकडी और नये बस अड्डे के लिए सवार हो गये, इस बस मे लगभग साढे छ फुट आदमकद का एक विदेशी व्यक्ति जो देखने मे भारतीय लग रहा है एकदम क्लीन सेव्ड और गंजा भी था हम दोनो को देख कर बार-बार मुस्कुरा रहा था और हम भी उत्तर मे हल्की मुस्कान फैला देते थे लेकिन उसकी वेशभूषा और आउटलुक बडी हास्यपद थी बडी मुश्किल से हम अपनी हँसी रोक पा रहे हैं।

वह भी नये बस अड्डे उतरा और कईं बार हमसे टकराया और मुस्कुराया वो भी भेष बदल-बदल कर बाद मे मुकेश जी ने मुझे बताया कि वह बौद्द धर्म अनुयायी हैं।

यहाँ शिमला जाने वाली बस के प्लेटफार्म बहुत भीड जमा है,लगता है कि बहुत देर से बस नही आयी है।

हम फ्रेश होने की प्रक्रिया मे लग गये है...शायद यहाँ रुकना पडेगा बस प्रतिक्षा में..सो बाद की बात से पहले एक विराम...।

डा.अजीत

Monday, June 7, 2010

धनोल्टी वाया मसूरी


सुबह जगते ही चाय की प्याली मिल गयी सो दिन की शुरुवात हो गई पिछ्ली रात की रोचक बात यह रही कि जिस जगह यह मकान है वहाँ रात मे पंखे की जरुरत ही नही है मौसम ऐसा बढिया था कि गर्मी का नामो-निशान नही है बल्कि ठंड और लगी सुबह के वक्त..।

घर से निकलते-निकलते 10.30. हो गये है जैसा पहले तय था हम लोग मसूरी के लिए निकले वो भी अनुरागी जी स्त्रियोचित बाईक होंडा एक्टिवा पर सवार होकर इस बार मैने खुद ही ड्राईव करने का फैसला किया क्योंकि पहाड की यात्रा के लिए अनुरागी जी पर भरोसा नही किया जा सकता है वो अभी सीखने और साहस खुलने की प्रक्रिया मे है..।मौसम एकदम बढिया है मैने चलने से पहले शर्त रख दी थी कि बाईक चलाते समय आप बातचीत जारी रखेंगे क्योंकि चुपचाप पहाड पर चढने मे बडी बोरियत होती है, सो हमने रास्ते मे खुब आलोचना-समालोचना,निन्दारस आदि का सुख लिया जिसमे दूनियादारी के लोगबाग भी शामिल थे और अपने कुछ अंतरंग मित्र भी..। इस बाईक की क्षमता थोडी कमजोर है चढाई पर त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगते है लेकिन चल अच्छी रही है होंडा कम्पनी ने यह बनाई तो है बालाओं या हल्के आदमियों के लिए और आज उस पर आज सवार है मेरे जैसा छ फुट शरीर का दैत्याकार मानव और कवि मित्र अनुरागी जी सो वो भी बेचारी विरोधाभास झेल रही है और अतिरिक्त भार भी..।

बडे शहरो की तन्हाईयों के शिकार और कुछ रईसजादे अपनी मंहगी गाडियों से बडी संख्या मे मसूरी पहूंच रहे है हम भी उन्ही का पिछा करते करते और गरियाते मसूरी के मुख्य गेट पर पहूंच गये लेकिन तभी अचानक मन मे ख्याल आया कि यार! मसूरी तो कई बार आना हो चुका है इस बार किसी नई जगह खानाबदोशी की जाए,तभी नज़र सामने के बोर्ड पर नज़र पडी जिस पर एक एरो का निशान लगा हुआ था और लिखा था धनोल्टी 32 किलोमीटर बस हमारा फैसला हो गया कि मसूरी को मारो लात और अब चलना है धनोल्टी। थोडा बहुत जितनी मुझे जानकारी है उसके हिसाब से धनोल्टी एक नव विकसित पर्यटक स्थल है जहाँ सर्दियों मे खुब बर्फबारी भी होती है सो उसी इमेज़ के साथ गाडी उस अनजाने रास्ते के लिए निकल पडी जिसके बारे मे सुना मात्र था मन मे एक भाव यह भी था कि मसूरी तो अंग्रेजो की बसाई नगरी है अपने देश के उस स्थल पर जाना हो रहा है जिसे हमने बनाया है इसे आप मेरी संकीर्ण मानसिकता भी कह सकते है।

रास्ता बहुत खुबसूरत है कम ही लोग जाते है क्योंकि सभी मसूरी के आकर्षण से ही मुक्त नही हो पाते है।

बहरहाल, धनोल्टी पहूंच गये है और यहा आकर लगा कि यह न एक गांव है और न ही एक कस्बा बस सडक के किनारे कुछ दुकाने है आमलेट और पकौडियों की, कुछ खच्चर वाले घुमते रहते है ऐसे युगलो की तलाश मे मे जो अपनी नव विवाहित पत्नि को खच्चर की यात्रा कराना चाहते है और उनके चेहरे पर भय और कौतुहल को अपने कैमरो मे कैद करना चाहते है चाहे वो मोबाईल से हो या वैसे कैमरे से।

एक छोटे से होटल मे खाना-पीना हुआ और फिर हम लोग साईट सीन के लिए निकल आए लोग बहुत भोले से है आपको लूटना नही चाहते अपनी रोज़ी-रोटी का जुगाड हो जाए यही चाहत है। वहाँ का सबसे बडा आकर्षण ईको पार्क है जहाँ से आप हिमालय के बेहतर नजारे ले सकते है तापमान जून मे भी 15-20 की बीच है अगर मौसम साफ है तो हिमालय की हिमचोटी भी दिखाई देख सकते है।

हमने नीचे एक रेहडी वाले से एक प्लेट पकोडो का आर्डर दिया और ईको पार्क के लिए निकल पडे उसने कहा आप जाइए पकोडे उपर ही पहूंचा दिए जाएंगे हमे एक हट मे बैठे हुए थे और प्रकृति के बेहतरीन नजारो का आनन्द ले रहे थे,निन्दारस यहा भी अपना काम कर रहा रहा था कभी जीवन की सार्थकता और निरर्थकता पर बातचीत होती रही,इसी बीच एक लडका 12 साल का लडका पकौडियों की प्लेट लेकर आ गया मैने पैसे पुछे कितने देने है बोला नीचे आकर दे देना उनके विश्वास और ईमानदारी से मै प्रभावित हुए बिना नही रह सका, मैने पुछा कि स्कूल नही जाते हो क्या वो हँस के बात टाल गया लेकिन मै निरुत्तर हो गया हूं अपने देश के बचपन का यह हाल देखकर।

हमने पकौडियों का आनन्द लिया तभी अनुरागी जी ने वहाँ सामान बेचते हुए लडको औपचारिक रुप से पकौडियो को चखने का आमंत्रण दिया और वे अनापेक्षित रुप से प्लेट पर टूट पडे,सच कहूं मुझे थोडा गुस्सा सा भी आया क्योंकि इसके बाद प्लेट मे एक दो पकौडी ही बची हुई थी लेकिन फिर अहसास हुआ हो सकता है बेचारे सच मे भूखे हों!

एक घंटा यहा बिताया और फिर वापसी की तैयारी नीचे आकर जब पकौडियों की प्लेट के पैसे पूछे तो बोला पचास! थोडा अजीब लगा लेकिन देकर रवानगी ली...।

वापसी मे मैने अपने मित्र अनुरागी जी के गरुड को वायुमार्ग की गति से दौडाया क्योंकि मुझे मुकेश जी के पास पहूंचना था शिमला निकलने के लिए, अनुरागी को अपनी एक्टिवा से बहुत प्रेम है और वे उसे बहुत केयर से भी रखते है मुझे पता है मेरी गति से उन्हे अच्छा भी नही लग रहा है थोडा डर भी रहे है क्योंकि पहाड के घुमावदार रास्तो पर यह स्वाभाविक भी है लेकिन मेरे सम्मानवश कुछ कह भी तो नही सकते सो चुपचाप बैठे रहे।

मसूरी से देहरादून के बीच के रास्ते पर हमने मैगी पाइंट पर मैगी खायी क्योंकि मुझे थोडी भुख लगी हुई थी, इसके बाद देहरादून अनुरागी जी के मकान पर पहूंच कर मैने स्नान किया और एक चाय की प्याली पी फिर वे मुझे मुकेश जी के पास छोड कर लौट आए...अब मै और मुकेश जी रात मे शिमला के लिए निकलेंगे...।

बाद की बाते बाद मे....अभी इतना ही लेकिन आजका दिन सार्थक रहा।

डा.अजीत

देहरादून: एक आगाज़

अब जीवन मे अनियोजन और अप्रत्याशित होने की घटनाओं की एक श्रंखला सी बन गयी है। हरिद्वार से देहरादून के लिए अपने बख्तरबंद के साथ निकला और बस मे बैठा दिया साथी मित्र योगेश योगी जी ने, इस बार मन कुछ खास बुझा हुआ नही था एक आंतरिक संतुलन बना रहा सफर मज़े मे कट ही रहा था कि रास्ते मे बस का टायर फट गया जिससे मन मे एक हल्की से अनहोनी की ब्यार आयी लेकिन इस मैने ज्यादा सोच विचार नही किया सोचा देखा जाएगा जो भी होगा अब जाना तो है ही,रास्ते से दूसरी बस बदलनी पडी जिसमे भीड तो थी लेकिन अपने विशालकाय होने का अनुचित लाभ मैने लिया वो भी भदेसपन और अपनी मुजफ्फरनगरी बोली के साथ लेकिन सच बात यह भी है कि रौब गालिब नही किया बस ऐसा ही काम बन गया और सीट मिल गई।
इसी बीच रास्ते मे एक बडा परिवर्तन यह भी हुआ कि देहरादून के अपने पत्रकार मित्र सुशील उपाध्याय जी के साथ भावी कार्यक्रम को लेकर एसएमएस बाजी हुई और उन्होने ने कारवां को पहले हेमकुट साहिब की बजाए शिमला की तरह मोडने के फैसले की सूचना भी दी इस सन्दर्भ के साथ कि अपने एक और विचारक मित्र मुकेश यादव जी पहले मेरे साथ शिमला के लिए रवाना होगें और वें एक दिन बाद अपना अखबारी कामकाज़ निबटाकर शिमला हम लोगो की खानाबदोशी को ज्वाईन करेंगे। मै इस परिवर्तन की सूचना से सहम भी गया था क्योंकि मुकेश जी आजकल मौन साधना मे है सो उनसे कैसे संवाद और समायोजन होगा?
देहरादून पहूंचते ही जहाँ बस ने छोडा वहीं पर अपने मित्र अनुरागी जी पांच मिनट मे अपने गरुड (होंडा एक्टिवा) लेकर मुझे लेने गये और मै उनके साथ सवार हो उनके नये मकान जो उन्होने अभी दो दिन पहले ही शिफ़्ट किया है वहाँ पहूंच गया हालांकि उनका आग्रह था कि मै उनका वाहन चलाऊं क्योंकि उन्होनें अभी-अभी ड्राईविंग सीखी है लेकिन मैने मना कर दिया और कहा आज आपकी ही परीक्षा ली जाएगी,अच्छी बात यह रही कि वे एक निपुण चालक की तरह अपनी एक्टिवा चला कर मुझे अपने नये घर तक ले गये।
एक एसएमएस के आग्रह के साथ हमने मुकेश जी को भी वही बुला लिया मन मे मिलने की अभिलाषा भी थी और जिज्ञासा भी कि जिसके साथ हमेशा ढेरो बातें करते थे उनके साथ मौन मे कैसे संवाद होगा? वो जल्दी ही हमारे बीच पहूंच गये और फिर शुरु हुआ अवाचिक संवाद का सिलसिला मै बोलता था वे मेरे सवालो के जवाब पैड पर लिख कर देते थे या अपने मोबाईल के राईट मैसज़ बाक्स के माध्यम से अपनी बात कहते थे। मेरे जीवन का यह पहला अवसर था कि मै अपने किसी मित्र के साथ इस माध्यम से बातचीत कर रहा था पहले थोडा असहज महसूस करता रहा क्योंकि संवाद मे वो तादात्म्य नही बन पा रहा था जो अक्सर हमारे मिलने पर होता था। मैने अपने बालमन से उनसे आग्रह भी किया कि जब तक हम लोग साथ है यह मौन व्रत रोक दिया जाए लेकिन उन्होने बडी विनम्रता के साथ मना कर दिया और मुझे कुछ गुर दिए ताकि कैसे बातचीत मे रोचकता बनी रहे। हम लोग लगभग दो घंटे तक साथ रहे और शिमला जाने के कार्यक्रम के बारे मे चर्चा करते रहे फिर लगभग रात के नौ बजे उन्होने विदा ली और यह तय हुआ कि कल शाम मुझे उनके पास पहूंचना है फिर रात मे ही शिमला के लिए निकला जाएगा। साथ खाना खाया गया जोकि अनुरागी जी ने बडे प्रेम से बनाया और परोसा था बहुत दिनो बाद मैने भी घर का खाना खाया है इसलिए अच्छा लगा अब सोने जा रहा रहा हूं नींद भी रही है कल की बात कल ही होगी बैसे मेरा और अनुरागी जी का मसूरी जाने का कार्यक्रम है...
डा.अजीत