Monday, June 7, 2010

देहरादून: एक आगाज़

अब जीवन मे अनियोजन और अप्रत्याशित होने की घटनाओं की एक श्रंखला सी बन गयी है। हरिद्वार से देहरादून के लिए अपने बख्तरबंद के साथ निकला और बस मे बैठा दिया साथी मित्र योगेश योगी जी ने, इस बार मन कुछ खास बुझा हुआ नही था एक आंतरिक संतुलन बना रहा सफर मज़े मे कट ही रहा था कि रास्ते मे बस का टायर फट गया जिससे मन मे एक हल्की से अनहोनी की ब्यार आयी लेकिन इस मैने ज्यादा सोच विचार नही किया सोचा देखा जाएगा जो भी होगा अब जाना तो है ही,रास्ते से दूसरी बस बदलनी पडी जिसमे भीड तो थी लेकिन अपने विशालकाय होने का अनुचित लाभ मैने लिया वो भी भदेसपन और अपनी मुजफ्फरनगरी बोली के साथ लेकिन सच बात यह भी है कि रौब गालिब नही किया बस ऐसा ही काम बन गया और सीट मिल गई।
इसी बीच रास्ते मे एक बडा परिवर्तन यह भी हुआ कि देहरादून के अपने पत्रकार मित्र सुशील उपाध्याय जी के साथ भावी कार्यक्रम को लेकर एसएमएस बाजी हुई और उन्होने ने कारवां को पहले हेमकुट साहिब की बजाए शिमला की तरह मोडने के फैसले की सूचना भी दी इस सन्दर्भ के साथ कि अपने एक और विचारक मित्र मुकेश यादव जी पहले मेरे साथ शिमला के लिए रवाना होगें और वें एक दिन बाद अपना अखबारी कामकाज़ निबटाकर शिमला हम लोगो की खानाबदोशी को ज्वाईन करेंगे। मै इस परिवर्तन की सूचना से सहम भी गया था क्योंकि मुकेश जी आजकल मौन साधना मे है सो उनसे कैसे संवाद और समायोजन होगा?
देहरादून पहूंचते ही जहाँ बस ने छोडा वहीं पर अपने मित्र अनुरागी जी पांच मिनट मे अपने गरुड (होंडा एक्टिवा) लेकर मुझे लेने गये और मै उनके साथ सवार हो उनके नये मकान जो उन्होने अभी दो दिन पहले ही शिफ़्ट किया है वहाँ पहूंच गया हालांकि उनका आग्रह था कि मै उनका वाहन चलाऊं क्योंकि उन्होनें अभी-अभी ड्राईविंग सीखी है लेकिन मैने मना कर दिया और कहा आज आपकी ही परीक्षा ली जाएगी,अच्छी बात यह रही कि वे एक निपुण चालक की तरह अपनी एक्टिवा चला कर मुझे अपने नये घर तक ले गये।
एक एसएमएस के आग्रह के साथ हमने मुकेश जी को भी वही बुला लिया मन मे मिलने की अभिलाषा भी थी और जिज्ञासा भी कि जिसके साथ हमेशा ढेरो बातें करते थे उनके साथ मौन मे कैसे संवाद होगा? वो जल्दी ही हमारे बीच पहूंच गये और फिर शुरु हुआ अवाचिक संवाद का सिलसिला मै बोलता था वे मेरे सवालो के जवाब पैड पर लिख कर देते थे या अपने मोबाईल के राईट मैसज़ बाक्स के माध्यम से अपनी बात कहते थे। मेरे जीवन का यह पहला अवसर था कि मै अपने किसी मित्र के साथ इस माध्यम से बातचीत कर रहा था पहले थोडा असहज महसूस करता रहा क्योंकि संवाद मे वो तादात्म्य नही बन पा रहा था जो अक्सर हमारे मिलने पर होता था। मैने अपने बालमन से उनसे आग्रह भी किया कि जब तक हम लोग साथ है यह मौन व्रत रोक दिया जाए लेकिन उन्होने बडी विनम्रता के साथ मना कर दिया और मुझे कुछ गुर दिए ताकि कैसे बातचीत मे रोचकता बनी रहे। हम लोग लगभग दो घंटे तक साथ रहे और शिमला जाने के कार्यक्रम के बारे मे चर्चा करते रहे फिर लगभग रात के नौ बजे उन्होने विदा ली और यह तय हुआ कि कल शाम मुझे उनके पास पहूंचना है फिर रात मे ही शिमला के लिए निकला जाएगा। साथ खाना खाया गया जोकि अनुरागी जी ने बडे प्रेम से बनाया और परोसा था बहुत दिनो बाद मैने भी घर का खाना खाया है इसलिए अच्छा लगा अब सोने जा रहा रहा हूं नींद भी रही है कल की बात कल ही होगी बैसे मेरा और अनुरागी जी का मसूरी जाने का कार्यक्रम है...
डा.अजीत

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