Thursday, June 10, 2010

देहरादून से शिमला-प्रथम

अब वो वक्त आ ही गया जब कूच करना शिमला के लिए मै जैसे ही मुकेश जी के पास पहूंचा तब वो मैगी का भोग लगा रहे थे और पास मे तैयार रखा बैग यह बता रहा था कि उनकी पूरी तैयारी है बस अब कुछ ही पलो मे हमे निकलना है मैने भी थोडा मैगी का भोग लगाया और चाय की प्याली पी फिर हम दोनो ने यात्रा की रुपरेखा पर संक्षिप्त चर्चा की पेपर पैड के माध्यम से क्योंकि यह मै पहले भी बता चूका हूं कि मुकेश जी आजकल मौन मे है वे केवल पेपर-पैड या अपने मोबाईल के राईट मैसज़ बाक्स के माध्यम से अपनी बात कहते है।

मेरे लिए यह एक नई चुनौति थी कि मुझे अपने एक ऐसे मित्र के साथ सफर तय करना था जिनसे मेरी अक्सर लम्बी बातें होती थी और अब वे मेरे साथ चलेंगे वह मौन अवस्था मे।हालांकि उन्होने चलने से पहले मुझसे कह दिया था कि अब वो केवल मेरा बिना शर्त अनुसरण करेंगे, शिमला पहूंचने तक के सभी निर्णय मुझे ही लेने होंगे।

घर से निकलते वक्त तय यह हुआ था कि बस अड्डे तक पहूंचने के लिए पब्लिक ट्रांसपार्ट लिया जाएगा लेकिन घर से मुख्य रोड तक आते-आते विचार बदल गया और आटो रिक्शा लेने का निर्णय हुआ, जल्दी ही एक आटो मिल भी गया उसने 80 रुपये मांगे और सौदा 60 मे पट गया लगभग 20 मिनट मे हम लोग आईएसबीटी देहरादून पहूंच गये,वहाँ पूछताछ से पता चला कि रात के 9 बजे चंडीगढ के लिए बस जाएगी। हम लोग बस के इंतजार मे बैठे रहे और जैसे ही बस प्लेटफार्म पर लगी हमने अपनी सीट सुरक्षित कर ली तथा बैग आदि फिट कर दिए,मैने मुकेश जी को वही रुकने के लिए कहा और खुद नीचे जाकर कंडक्टर से टिकिट ले आया। ठीक 9 बजे बस ने अपने गंतव्य की तरफ प्रस्थान किया तब तक हमारे बीच कम ही संवाद हुआ वह भी एसएमएस के माध्यम से साथी यात्री हम दोनो बडी ही कौतुहल भरी निगाहों से देख रहे थे क्योंकि केवल मै ही बोल रहा था मुकेश जी सहमति असहमति मे गर्दन हिला देते थे या मैसज़ करके जवाब देते थे।

संभवत: अनापेक्षित रुपसे कई बार लोग मुकेश जी के मौन का अर्थ यह लगा लेते है कि वें जन्मजात मूक बधिर है या किसी हादसे का शिकार होकर उनकी ऐसी स्थिति बनी हुई है।

बस तेज गति से चली जा रही है सहारनपुर तक मार्ग के साथ एक खास किस्म का अपनापन बना रहा सो पता ही नही चला रास्ता कैसे कट गया। बस जैसे ही यमुनानगर से आगे निकली हम दोनो की भुख के कारण कमोबेश एक जैसी हालत बनी हुई है और गाडी की जिस गति से ड्राईवर चला रहा है उससे लग रहा है कि उसको भी भुख हमारे जैसे ही लगी हुई है और वह भी जल्दी ही ढाबे पर पहूंचना चाहता है सो दौडा रहा है बेहिसाब।

गाडी रुकी हम उतरे और जल्दी ही भीड का हिस्सा बन कर रोटी के लिए आर्डर देने लगे भीड बहुत ज्यादा है और खाने की क्वालिटी भी औसत से भी कम है,दाल रोटी का आर्डर मैने दे दिया मुकेश जी ने सहमति जताई साथ मे चना मसाला और जोडा उन्होनें जोकि मुझे तो उतना पसंद भी नही है और वहाँ की स्थिति देखकर नही लगता कि बढिया क्वालिटी का होगा भी,खैर थोडी ही देर मे मारा मारी के बीच थाली हम तक पहूंची और हम खाने पर टूट पडे,गांव की एक कहावत है कि भुख मे गुल्लर भी पकवान लगते है ठीक यही हालत हमारी थी।

खाने की ज्यादा चर्चा क्या करुं बस एक रोचक बात बात आपको बताता चलूं एक बार मुकेश जी ने थोडी अतिरिक्त दाल मांगी तो ढाबे के मालिक ने कहा एक फुल प्लेट दाल दो उन्होनें हाथ से इशारा किया कि थोडी सी ही चाहिए फुल प्लेट नही, मुकेश जी की सांकेतिक भाषा से उसने भी वही समझा जो अन्य सामान्य लोग समझ रहे थे कि शायद बेचारा मूक बधिर है सो उसने करुणा,सहानुभूति के भाव के साथ दाल की फुल प्लेट भिजवा दी इस भाव के साथ कि दे दो बेचारे को!

खैर! हमने खाना खत्म किया और बिल का भुगतान मुकेश जी ने किया ढाबे के मालिक ने उस अतिरिक्त दाल का पैसा हमसे नही लिया,हम मन ही मन मुस्कुरा रहे थें कि विश्व गुरु भारत और अध्यात्म के बडे केन्द्र इस देश मे आज भी मौन और मूक बधिरता मे कोई खास अंतर नही हो पाता है।

गाडी ने हार्न बजाया हम जल्दी से मुत्र विसर्जन की प्रक्रिया से निवृत हुए और अपनी सीट पर विराजमान हो गये है। रास्ते मे हल्की-हल्की सी नींद की झपकियां आ रही है मुझे तो बस मे नींद नही आती है ठीक ऐसी ही हालत मुकेश जी की भी बनी हुई है लेकिन हमारी जैसे ही तन्द्रा टूटी डेरा बस्सी आ चूका था और फिर जल्दी हम लोग चडीगढ के सेक्टर-17 वाले बस अड्डे पर पहूंच गये।

यहा से सिटी बस पकडी और नये बस अड्डे के लिए सवार हो गये, इस बस मे लगभग साढे छ फुट आदमकद का एक विदेशी व्यक्ति जो देखने मे भारतीय लग रहा है एकदम क्लीन सेव्ड और गंजा भी था हम दोनो को देख कर बार-बार मुस्कुरा रहा था और हम भी उत्तर मे हल्की मुस्कान फैला देते थे लेकिन उसकी वेशभूषा और आउटलुक बडी हास्यपद थी बडी मुश्किल से हम अपनी हँसी रोक पा रहे हैं।

वह भी नये बस अड्डे उतरा और कईं बार हमसे टकराया और मुस्कुराया वो भी भेष बदल-बदल कर बाद मे मुकेश जी ने मुझे बताया कि वह बौद्द धर्म अनुयायी हैं।

यहाँ शिमला जाने वाली बस के प्लेटफार्म बहुत भीड जमा है,लगता है कि बहुत देर से बस नही आयी है।

हम फ्रेश होने की प्रक्रिया मे लग गये है...शायद यहाँ रुकना पडेगा बस प्रतिक्षा में..सो बाद की बात से पहले एक विराम...।

डा.अजीत

2 comments:

  1. आईये सुनें ... अमृत वाणी ।

    आचार्य जी

    ReplyDelete
  2. बढ़िया रोचक यात्रा वृतांत चल रहा है...आगे की यात्रा का इन्तजार है.

    ReplyDelete