Saturday, July 3, 2010

शिमला: आखिरी दिन-एक

सबसे पहले एक फोटो डाल रहा हूं जिससे यह पुष्टि हो सके कि कल कितनी बारिश मे भीगे थें हम| सुबह जब हम लोगो ने दोबारा फिर आवारागर्दी की तैयारी की तो सबसे पहले जूते और जुराबों ने अपने हाथ खडे कर दिए इनमे न केवल सीलन भर थी बल्कि अभी अच्छे खासे गीले थे जिन्हें पहनकर तो कम से कम नही चला जा सकता था। बडी असमंजस की स्थिति थी तभी मुकेश जी ने सलाह दी की पास वाले कमरे मे हीटर रखा हुआ है उसको लिया जा सकता है पहले तो मुझे यकीन नही हुआ कि हीटर से जूते-जुराब भी सुखाए जा सकते है लेकिन सुशील जी के चेहरे की चमक से मै आश्वस्त हो गया और फिर पास वाले रुम से हीटर लाया गया। नीचे के फोटो मे आप देख सकतें है कि हमने किस प्रकार से अपने गीले जुते-जुराब हीटर से सुखाए...


..... जूते सुखाते-सुखाते सुशील जी ने यह भी रहस्योद्घाटन किया कि कल रात उन्होने चुपके से जब मै और मुकेश जी पानी लेने बाहर गये हुए थे तब अपने चमडे के जुतों मे अखबार डाल दिए थें ताकि रात मे वो अन्दर का गीलापन सोंख सके,जिसका असर दिख भी रहा था मेरे स्पोर्टस शूज़ कुछ ज्यादा ही गीले थे लेकिन हीटर का फंडा बहुत कामयाब रहा और मसखरी करते-करते हमने अपने जूतें सुखा ही लिए...।बीच-बीच पास के क्लास रुम से एक बालक-बालिका हमारे कमरे के बाहर के टेरस पर आ जातें थे और बालक बालिका की बालसुलभ जिज्ञासाओं को शांत करने की कोशिस कर रहा था,प्रेम,मित्रता और आयु के प्रभाव से उपजा कौतुहल सुशील जी के लिए हास्य का विषय बना हुआ था जिसमे अपने चुस्त जुमले जोडकर वे उस स्थिति को और भी रोचक बना देते थे, और क्लास रुम से आती ऊर्दू के सबक याद कराती मोहतरमा की मधुर आवाज का अनचाहा आकर्षण भी माहौल को और जीवंत बना रहा था इसी बीच सुशील जी ने बताया कि उन्हें किस तरह से गेस्ट लेक्चर देने का चस्का लग गया है मैने कहा एक क्लास इन बालकों की भी हो जाए जिसे वे हँस कर टाल गये।

अब हम निकल पडे है और आज माल रोड पर नही गये बल्कि सी.एम.आवास से होते हुए छोटी शिमला की तरफ निकल पडे,नाम से भी लगता है कि कभी शिमला का मूल स्वरुप यही रहा होगा बाद मे अंग्रेजो ने नये शिमला को विकसित किया।संयोग से इस शिमला यात्रा के पीछे एक छोटा का औपचारिक कार्य भी रहा था जिसमे दुर्घटना घटित होने से रंग मे भंग पड गया,मुकेश जी के एक सहयोगी मित्र अनिल जो शिमला मे ही रहते है उनकी आज सगाई और शादी का कार्यक्रम था लेकिन जैसाकि कल ही हमे कल सूचना मिल गई थी उनके होने वाले ससुर का कार्यक्रम से ठीक एक दिन पहले आकस्मिक देहावसान हो गया सो बडी अजीब स्थिति बन गयी थी उनके घर पर सो मुकेश जी ने बताया कि इसी रास्ते मे अनिल का घर भी पडेगा तो दो मिनट के शोक सांत्वना देते हुए चलेंगे हम लोग अनिल के घर के बाहर पहूंचे जोकि एक ढलान पर था तभी वहाँ जाकर पता चला कि अनिल घर पर नही है और सगाई के कार्यक्रम को स्थगित न करके नितांत ही निजि और औपचारिक रुप से किया गया है। हमने अनिल के लिए अपना संदेश छोडा और फिर यहाँ से रवानगी ली और साथ मे दुआ भी की,कि ईश्वर को ऐसी विडम्बना नही करनी चाहिए खासकर उस लडकी पर क्या बीतती हो गई जिसकी शादी के ऐनवक्त पर उसका पिता अलविदा कह दें....!

रास्ते मे हिमाचल प्रदेश का सचिवालय है आसपास काफी पुलिसबल तैनात है बाद मे पता चला कि आज किसी संगठन का विरोध प्रदर्शन है। यहाँ के सरकारी अमले के पास वीआईपी श्रेणी की एम्बेस्डर कार एक्का-दुक्का ही है बाकी अधिकांश कारे या तो इंडिगो है या इसी क्लास की स्वीफ्ट वगैरह...पहली बार इन ग़ाडियों पर लाल-नीली बत्तियाँ देखकर इनके वीआईपी होने का अहसास नही होता क्योंकि मै केवल एम्बेस्डर पर ही लाल-नीली बत्तियाँ देखने का आदी हूं..।

एक बस स्टाप पर रुका गया यह सडक के मुहाने पर है मैने और सुशील जी ने अपने-अपने फोन कानों पर लगा लिए है धूप अच्छी खिली हुई है मैने अपनी पत्नि को कल के मसखरी वाले फोन का किस्सा सुना जिस पर उसको आश्चर्यमिश्रित शक व्यक्त किया लेकिन मै अपने मन के बोझ से मुक्त...। थोडी देर यहाँ रुकने के बाद वापस शिमला की तरफ रवानगी पकडी..।सचिवालय के बाहर दीवार पर लिखे एक संदेश ने मेरे शब्द-सामर्थ्य मे इजाफा किया यह शब्द मैने पहली बार पढा था लिखा हुआ था कृपया चढते समय वाहन अनुलंघन न करें, अनुलंघन मैने पहली बार पढा था जिसका नीचे अंग्रेजी वर्जन मे शब्द लिखा हुआ था ओवरटेक।

सिटी बस पकड कर हम वापस लिफ्ट की और जा रहे है बस मे भीड ज्यादा नही थी सो हम तीनो को सीट भी मिल गई है रास्ते मैने सुशील जी के समक्ष अपने मित्र-पुराण की कथा कही जिसमे अपने एक वक्त के साथ बदल गये मित्र की आलोचना-समालोचना थी निन्दा नही, यह कथा मै बांच रहा था और सुशील जी जागरुक श्रोता की तरह है सुन भी रहे थे और अपने आख्नाओं से मेरी बात की पुष्टि भी कर रहे थें और मुकेश जी इस सब का आनंद ले रहे थे।

लिफ्ट पर उतरा गया पहले यही सोचा था कि लिफ्ट से माल रोड तक जाएंगे लेकिन वहाँ की भीड देखकर साहस नही हुआ लाईन मे लगने का एक बार मुकेश जी लाईन मे लग भी गये लेकिन फिर उनका ही निर्णय हुआ कि पैदल ही उपर चलते है। मेरी कथा अभी चालू थी चूंकि इस पुराण के पुरोवाक के सुशील जी भी साक्षी थे सो उनके समक्ष अपनी पीडा उडेल कर एक अजीब सा सुख भी मिल रहा था। उपर चढते हुए रास्ते मे हमने खाने के लिए एक-एक (गांव में बच्चे बुढिया के बाल बोलते है-शहरी नाम मुझे याद नही) लिए और खाते हुए उपर की तरफ बढ चले रास्ते मे एक भिखारिन अपने भुखे बच्चे के नाम पर भीख मांग रही है उसकी भाषा तो समझ मे नही आ रही है लेकिन उसके चेहरे पर पसरा करुणा,ममत्व का भाव किसी वाचिक भाषा का मोहताज़ नही है मुकेश जी अपने वाला बुढिया के बाल का गोला उसके बच्चे को दे दिया और मै और सुशील जी करुणा भाव के साथ आगे बढ चले।

धूप अच्छी निकल गई है हम अब रिज पर पहूंच गये है यहाँ ठंडी हवा चल रही है जो सर्दी के अहसास से भर देती है सामने महात्मा गाँधी की एक मूर्ति लगी हुई है जिस पर यह भी लिखा हुआ है कि वें कब-कब यहाँ आयें और किस सिलसिले मे शिमला मे प्रवास किया।सुशील जी ने उनके शिमला प्रवास पर एक चुस्त जुमला कसा और हम दोनो मुस्कुराएं..।गाँधी जी की मूर्ति के ठीक नीचे बैठ कर हम सुस्ताने लगे एक बच्चा कौतुहलवश महात्मा गाँधी की मूर्ति को देखता की जा रहा है उसकी मां उसको अपने साथ कही और ले जाना चाहती है लेकिन उसका ध्यान लाठी वाले बाबा पर ही है अंत मे थककर उसकी मां उस बच्चे को बताया कि ये महात्मा गाँधी जी है तब बच्चे ने जैसे मन्दिर मे भगवान के सामने हाथ जोडते है ऐसे गाँधी जी को अपनी निश्छल भाव-भंगिमा के साथ नमन किया सच मे अगर मे कही पर भी गाँधी जी की आत्मा स्वर्ग-नरक मे होगी तो खुश हो गई होगी इस नमन पर..।

हनीमून कपल्स घोडो की सवारी से लेकर हिमाचल की लोक वेशभूषा मे फोटो खींचवा रहे है अजीब नशा यह भी...पर अपना दिल लगा यार फकीरी में...।

अचानक फिर से बून्दा बान्दी शुरु हो गई है और थोडी भुख भी लगने लगी है सो हम लोग फिर से उसी रेस्त्रां मे पहूंच गये है जहाँ पर पहले दिन मैने और मुकेश जी 23/-रुपये वाला समोसा खाया था इसकी चर्चा मैने सुशील जी से बैठते ही की....बाहर मंद-मंद बारिश हो रही है अंदर कुलीन लोगो के महंगे डियो-परफ्यूम और रुम फ्रेशनर की मिली-जुली भीनी-भीनी खुशबु माहौल को और रोमानटिक बना रही है नेपथ्य मे आर.डी.बर्मन की मदहोश धुने बज रही बिल्कुल कर्णप्रिय वोल्यूम के साथ..ये शाम मस्तानी मदहोश किए जाए...! तभी मीनू कार्ड से यह तय किया जाने लगा कि क्या खाया जाए मैने बिना देखे समोसा बोल दिया क्योंकि बडे अजीब-अजीब से डिशिज़ के नाम है सो मै प्रयोग करने के मूड मे नही थी क्योंकि सवाल भुख का था ऐसा कई बार हुआ कुछ नया ट्राई करने के नाम पर मैने ऐसी कुछ मंगा लिया कि जो न खाया जाए और पैसे देखकर न छोडा जाए...सो अपना गोल्डन रुल भईया बात जब भुख की हो तो वही खाओं जो आपको पसंद हो और पहले खा चूके हो।

दो समोसे और दो चाय का आर्डर दिया गया,मै केवल समोसा खांउगा और सुशील जी केवल चाय पीयेंगे..।थोडी देर मे चाय और समोसे आ गये मैने पहली बार हिस्सो मे बटी हुई चाय देखी मसलन चाय का पानी (केतली मे),शुगर क्यूब्स,दूध और चाय-पानी छानने के लिए काम्पेक्ट छलनी।खुद बनाओं और पियों..क्या बात है लेकिन चाय का इतना कुलीन और शिष्टाचारिक स्वरुप देखकर इसको बनाने मे मेरे जैसे भदेस आदमी के हाथ काँप सकते है किसी घनघोर शराबी की तरह..।

मैने अपना समोसा चट किया और सुशील जी ने चाय बनाई अपने और मुकेश जी के लिए बाद मे मेरी प्लेट से समोसे का छोटा सा टूकडा उठाते समय सुशील जी को शायद अपने लिए समोसा न मंगाने का खेद जरुर हुआ होगा।

यहाँ पर एक रोचक किस्सा भी हुआ..जो बताता चलूं जैसे ही हम लोग खा-पीकर बाहर निकले तो लगा कि बारिश तेज़ हो गई सो हम तीनो मुख्य प्रवेश गेट के पास ही रुक गये और बारिश कम होने की प्रतिक्षा करने लगे तब हमे अपने साथ आज छाता न लाने का अहसास भी हुआ...मैने तो सहजतापूर्वक प्रस्ताव भी रखा कि यहाँ बाहर छाता-स्टैंड मे इतने सारे छाते रखे हुए है अपना एक-एक उठा कर चलो लोग-बाग तो अपने परिवार,महबूबा के साथ व्यस्त है अपने साथ लाए छाते की फिक्र किसको है और फिर जिसको जरुरत है उसे पहले प्रयोग करना चाहिए....बात मज़ाक की थी।

तभी मैने सुशील जी से कहा कि हमको मुत्र विसर्जन कर लेना चाहिए वो भी सहमत थे सो हम रेस्त्रा के बाहर की तरफ बना टायलेट मे गये वहाँ जाकर देखा कि यह तो एक कामन शौचालय/मुत्रालय है मसलन पुरुष/महिला के लिए अलग-अलग नही बना हुआ था।

लेडीज़ फर्स्ट के अधिकार के साथ एक लडकी और एक महिला क्यू मे थी हम भी लाईन मे लग गये तभी दो महिला और आयी और हमे लाईन मे खडा देखकर खिन्न हो गई लेकिन लाईन तो लाईन है भईया..उनको भी क्यू मे लगना पडा जगह थोडी कम है बाहर बारिश भी हो रही थी सो खिच्च-पिच्च के हालात बने हुए है। जैसे ही टायलेट का गेट खुला हम दोनो एक साथ अन्दर घुस गये इतनी कम जगह थी हगने-मूतने के लिए कि कोई व्यक्ति एक ही काम कर सकता था फिर जब बाहर इतनी भीड का प्रेशर हो तो कोई आदमी फ्रेश कैसे हो सकता है ये बाते हम अन्दर कर रहे थे और हँस भी रहे थे...मैने एक हाथ से गेट पकडा हुआ था अन्दर की तरफ, तभी बाहर से आवाजे आने लगी कि दो लोग एक साथ अन्दर घुस गयें है और अन्दर हँस भी रहे है ये सुनकर हमारी और हँसी छूट गई कि ये किसने नियम बनाया है कि मूतते वक्त आदमी हँस नही सकता! खैर हम जल्दी ही बाहर आ गये और बाहर जब उन महिलाओं ने एक बडी अजीब से नजर से हमे देखा तो तो हमारी फिर से हँसी छूट गई...और हम यह बडबडाते हुए निकले यार अगर मूतना है तो हँसना मना हैं। शहरी लोग और ऐटिकेट्स पसंद लोगो को कहाँ गवारा थे कि एक साथ एक टायलेट दो लोग हँसते हुए मूत्र विसर्जन करें...उन महिलाओं के चेहरो पर ठीक वही भाव था कि कुत्ते की पूछ को बारह साल नुलकी मे रख लो लेकिन रहेगी वो........।

काफी बडा लेखा-जोखा हो गया है इससे पहले की आप मेरी पकाऊं किस्म की शैली से बोर हो जाएं मै लेता हूं एक विराम...।आगे की बात अगली पोस्ट मे।

डा.अजीत

2 comments:

  1. अजीत जी ,

    बहुत ही रोचक लगी आपकी शिमला यात्रा ......चित्र कुछ जाने पहचाने लगे ........!!

    काफी वर्ष हो गए शिमला की यादें आपके चित्रों से ताज़ा हो गयीं ......!!

    हस्यपुट लिए उम्दा शैली में लिखा आपका यात्रा संस्मरण आपकी लेखनी का भी परिचय देता है ......!!

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  2. अपनी शिमला यात्रा के दोरान माला रोड जाने के लिए ,लिफ्ट की भीड़ देख कर हम भी लिफ्ट से जाने का साहस नहीं कर सके थे..अप का संस्मरण भी रोचक लगा.

    **[-आप की शिकायत वाजिब है परन्तु--आज कल मैं ओन लाईन ही बहुत कम आ पा रही हूँ इसलिए बहुत सी पोस्ट छूट गयी हैं.]

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