Saturday, August 14, 2010

निर्वासन

बात सुनने मे अजीब है और पढने मे रोचक कल मैने अपने जीवन का वो फैसला ले ही लिया जिसके लिए मै बडे ऊहापोह से गुजरा हूं। मानवीय सम्बन्धो के आधार मे अपेक्षा तो बनी ही रहती है या फिर कोई बुद्द तत्व को प्राप्त कर जाए फिर तो कोई पीडा नही लेकिन मेरे जैसा सामान्य मनुष्य लम्बे समय तक इस यंत्रणा से नही गुजर सकता है। कहने को आसपास सम्बन्धो का हरा भरा संसार घनिष्ट मित्र जो बौद्दिक और संवेदनशील दोनो ही हैं लेकिन शायद मै ही व्यावहारिक भावुक नही बन पाया।

ये विचार बहुत दिनो से मेरे मन मे चल रहा था कि जीवन को फिर उसी मोड पर लाया जाया जहाँ से ये यात्रा शुरु हुई थी जहाँ मैं था और मेरा विराट शुन्य फिर अस्तित्व के साथ मित्र जुडते गये और फिर उनके साथ जुडती गई तमाम महत्वकाक्षांए,अपनापन और अपेक्षाओं का एक ढेर सारा पुलिंदा। जिसको पुरा करना किसी के लिए भी संभव नही है अब शायद दूनिया ज्यादा प्रेक्टिकल हो गई है और भईया ! फिर सबके अपने अपने दुख है किसके पास इतना वक्त है कि वो पुराने बरगद के नीचे सुस्ताने बैठ जाए और उन भूली-बिसरी यादों के सहारे अपने आज को जिन्दा करने की कोशिस करें।

पिछला सप्ताह मेरे यादगार सप्ताह मे से एक रहेगा क्योंकि मैने अपने तीन साल पुराने मोबाईल कनेक्सन को एक झटके से बंद कर दिया है क्योंकि मै अब निर्वात मे बिना किसी सम्बन्ध के जीने चाहता हूं किसी से भी बतियाने की इच्छा नही है, और ऐसा मैने क्यों किया इस बात के लिए किसी को सफाई देना नही चाहता हूं, और न ही कोई खास वजह है मेरे पास। यादों की खट्ठी-मिट्ठी पोटली बनाकर चल पडा हूं अपने मूल दिगम्बर स्वरुप मे जैसा कभी मै था।

ज्यादा रिश्ते नाते नही बनाए लेकिन जो बनाए उनको निभाने के लिए मैने अपनी जी जान एक की है लेकिन ये मेरा दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि मैं शुन्य ही रहा। कुछ लोग ज्यादा समझदार हो गये हैं कुछ के लिए मै एक बौद्दिक खेल का विषय बन गया हूं कि देखते है क्या कहते है डाक्टर साहब!

बहरहाल अब इरफान की फिल्म रोग के डायलाग कि मन उब सा गया है कुछ ऐसी ही मनस्थिति सी है न अब कोई सम्बन्ध निभाने का मन है और न बनाने का। बस मन मे एक खीझ है जुगुप्सा है और बहुत से अनमने,अनकहे भाव है।

इसलिए दूनियादारी की भाषा मे कहूं तो अब अपने मे सिमटने का मन है विस्तार करके बहुत देख लिया साथ चलने बहुत मिलते है साथी का मिलना मुश्किल काम है।

सबके अपने काम अपनी ढपली अपना राग... शायद मै ही नाकाबिल था किसी रिश्ते को निभाने के लिए...।

सो आज से ये मेरा नया जन्म कह लीजिए पुनर्जन्म कह लीजिए सो कुछ भी आज मैने अपने द्वारा बनाए हुए सभी मानवीय सम्बन्धों का श्राद्द कर दिया है अभी गंगाजल का आचमन करके लौटा हूं....।

इसके बाद मै क्या करुंगा ? कहाँ रहूंगा इसकी सूचना की वैसे तो कोई जरुरत नही है लेकिन फिर भी अगर किसी का कोई मानसिक कर्ज बाकी हो तो वो मुझे मेरे ई-मेल से सम्पर्क कर सकता है। ऐसा नही है कि मै आजके बाद मोबाईल का इस्तेमाल नही करुंगा,जरुर करुंगा लेकिन केवल उनके लिए उपलब्ध रहूंगा जिन सम्बन्धों की नीव मैने नही रखी मसलन घर,परिवार,पिता,भाई,पत्नि आदि...।

डा.अजीत

dr.ajeet82@gmail.com

4 comments:

  1. भाई आप मेरी ही नाम राशि के हैं बस अन्‍तर इतना ही है कि मैं महिला हूं और आप पुरुष। नाम देखकर ही आपके ब्‍लाग पर आयी थी। पोस्‍ट पढ़ी लगा कि कई बार ऐसा ही होता है। आप ब्‍लाग पर लिखते रहें मन प्रफुल्लित रहेगा।

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  2. अजीत भाई आज तो मै भी कई सालों के बाद थोडा confuse हुआ हूँ. बिलकुल नहीं समझ पा रहा कि ये जो आपने लिखा है ये आपके sense of humour की एक छोटी सी झलक है या वाकई एक ऐसी हकीकत जो सुनने और महसूस करने का बिलकुल जी नहीं चाहता.

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  3. शील जी ये वही हकीकत है- जो सुनने और महसूस करने का बिलकुल जी नहीं चाहता.
    लेकिन आप फिक्र न करें ब्लाग हमारे संवाद का सेतु बनेगा..।

    आभार

    डा.अजीत

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  4. अजीत भाई आज आपसे chatting करने के बाद मै बहुत relaxed महसूस कर रहा हूँ. मै आश्वस्त हूँ और यकीन भी है कि आपको अपनी साधना मे बहुत शीघ्र ही सिद्धि मिलने वाली है.
    मेरी शुभकामनायें निश्चय ही आपके साथ हैं.

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