Wednesday, August 25, 2010

मिज़ाज बदलना जरुरी है

खानाबदोश पर पिछली कुछ ताजातरीन पोस्टों मे मेरा इमोशनल अत्याचार चल रहा था कुछ ऐसे अहसास आपक साथ शेयर कर रहा था जोकि शायद निजि किस्म के हो सकते है,हालांकि मेरे लिए ऐसा कुछ निजि नही है जो मै आपके साथ बांट न संकू....।फिर भी मर्द को दर्द नही होता टाईप के फिल्मी डायलाग और ऐसी अपेक्षाओं के कारण मै अपना विधवा-विलाप अभी बंद करता हूं जिन्दगी अपनी राह खुद बनाती है हम लाख करें कोशिस अपने आप को ढोने की...।

जून मे मैने अपनी पत्रकार से मास्टर कनवर्ट हुए मित्र सुशील उपाध्याय जी(यात्रा के समय वो पत्रकार ही थें..एक वरिष्ठ पत्रकार) के साथ हेमकुंड साहिब और फूलो की घाटी की यात्रा की थी बडी मजेदार रही थी यह यात्रा उसका सम्पूर्ण वृतांत लिखने का साहस तो मै खो चुका हूं बस कुछ छायाचित्र आपके लिए खानाबदोश पर प्रकाशित कर रहा हूं इस उम्मीद के साथ कि आपको पंसद आयेंगे...। कभी ऐसा भी हो सकता कुछ इस यात्रा के बारें मे भी लिखूं इसलिए उम्मीद बांधे रखिए वैसे मेरा कुछ भरोसा तो है नही.....।

(कृपया फोटो पर जो तारीख प्रिंट हो रखी उस पर ईमान मत लाना ये एक मानवीय भूल के कारण हुआ कि हम कुछ ज्यादा जोश मे डिजिटल कैमरे की तारीख बदलना भूल गये थे,अगली पोस्ट जिसमे फूलो की घाटी के चित्र होंगे उनमे आप बदली हुई तारीख देख सकते है)

शेष फिर
डा.अजीत
बिना कैप्सन के फोटो के लिए खेद है मुझे इस बारे थोडा तकनीकि ज्ञान कम हैं....डा.अजीत














2 comments:

  1. सभी चित्र बहुत ही सुन्दर हैं!
    --
    यदि चित्रों के साथ विवरण का विस्तार होता तो
    हमें भी काफी कुछ जानने को मिल जाता!

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  2. नयनाभिराम चित्र हैं हेम कुंड साहिब के...आप फूलों की घाटी का यात्रा वृतांत भी लिखें...धीरे धीरे ही सही...हम इंतज़ार करेंगे...लेकिन क़यामत तक नहीं :))

    नीरज

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