Wednesday, October 6, 2010
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रात सर पर है और सफर बाकी,हमको चलना ज़रा सवेरे था...
इस ब्लाग का लेखक एक परजीवी आत्ममुग्ध और बेबात नाराज़ और उदास रहने वाला देहाती मानुष है। हिन्दी से असीम अनुराग है बोलता ठीक-ठाक है लेकिन लेखन मे गंभीर व्याकरण से लेकर वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियां होने की शत प्रतिशत संभावना है सो शुद्द हिन्दी पढनें वालो और भाषागत शुचिता के पैरोकारों से मै क्षमा ही मांग सकता हूं क्योंकि मेरे लेखन का यह वह स्याह पक्ष है जिसमे सुधार ही कम ही संभावना है। आप उदारमना होकर मेरी गंभीर त्रुटियों को नज़रअन्दाज करेंगे ऐसा मेरा विश्वास है।