Friday, May 21, 2010

बहुत बेआबरु हो कर…

गालिब के शहर दिल्ली से उसी के शेर के साथ जीने का तज़रबा ले कर आज वहाँ से लौटा हूं उस जगह पर जहाँ अभी जाना भी जेहन मे कतई नही था लेकिन ज़िन्दगी इसी का नाम है कि आप जैसा चाहते है बिल्कुल वैसा तो कभी नही होता पुराने दोस्तो के साथ वक्त मजे मे ही गुजरा है लेकिन रिश्तों को निभाने के लिए जितना प्रेक्टिकल होना चाहिए या यूं कहूं कि व्यवहारिक भावुक होना चाहिए उतना मै कभी नही हो पाया और न ही लगता है कि कभी हो भी पाऊंगा।

एक सबक सीखा है कि बुरे वक्त मे दोस्त भी तल्ख हो जाते है जब उनका भी वक्त बुरा चल रहा हो तब महफिल की शान खामोशी बन जाती है अगर कुछ बोले तो जाना पहचाना ताना सुनने को मिल ही जाता है कि अभी दूनिया देखी कितनी है भईया। ऐसे मे सलाह भी नसीहत लगने लगती है।

जितनी गर्म जोशी से दिल्ली मे जाना हुआ था उतने ही अनमने मन से वापस आ गया हूं अपने एक मित्र के ब्रह्म ज्ञान के साथ कि अभी मैं बालक है भाई दूनियादारी को समझने के मामले मे...जिसे वे शिष्टाचार की चासनी मे लपेटकर मासूमियत भी कहतें है कई बार। हो सकता है कि उनका नजरिया ठीक हो लेकिन जिस अहसास और जिद आपके जीने की वजह बनी हो उसी के न होने का अहसास जब कोई करवाता है तब चोट तो लगती ही हैं।

अभी और परिपक्व होने का प्रशिक्षण लेने निकला हूं अब तक जो भोगा और जाना पहचाना वह तो हो गया है शून्य मेरी मासूमियत के कारण। दो बात अपने बारे मे पता चली जो नई तो नही है लेकिन सन्दर्भ जरुर नया है कि एक तो मेरा कोई दोस्त नही है बल्कि सभी प्रशसंक है प्रतिशत के रुप मे और दूसरी फिल्म अभी बाकी है मेरे दोस्त मेरे लिए लिखा गया डाय़लाग है।

इतनी हडबडी मे शहर छोडा है कि अपना नया हैंडलूम का तौलिया और चशमे का कवर बाक्स भी दोस्त के आशियाने पर छुट गया है जिसका अभी पता चला है। लगभग पांच घंटे निजामुद्दीन स्टेशन लावारिस की तरह काटने के बाद रात को 12 बजे रेलगाडी मे सवार हो कर आज सुबह 6 बजे देहरादून पहूंचा लेकिन जिनके लिए पहूंचा था मेल-मिलाप करने के लिए उनकी वाईब्रेशन मेरे दिल को पहले से ही ठीक नही लग रही थी लेकिन ज़िद करके जा रहा था और कहा जाता है ना कि जिस बात के लिए दिल गवाही न दे वह नही करनी चाहिए लेकिन मैने की क्योंकि आदत से मजबुर हूं ना।

अभी ट्रेन से उतर से इस असमंजस मे था कि किसके दर पर दस्तक दूं तभी एक एसएमएस आया और मैने उसी समय वापस हरिद्वार जाने वाली ट्रेन को भाग कर पकड लिया और वहाँ से वह डगर पकड ली जहाँ अभी तो कतई नही जाना था।

आज दोपहर खानाबदोशी के क्रम मे अपने गांव हथछोया मे आ गया हूं घर वालो के लिए उत्सव जैसा माहौल है मै अपने मे ही डूबा हुआ। गांव मे एक लोकोक्ति प्रचलित होती है अडी-भीड का यार मकन्दा मतलब (मित्र के रुप मे अंतिम विकल्प जो मुश्किल मे काम आए) मुझे बहुत प्रासंगिक लग रही है क्योंकि अब अपना कोई यार मकन्दा नही बचा है।

बहस,विवाद,नाराज़गी कोई नई बात नही होती है दोस्ती मे होनी भी चाहिए आखिर किस बात का अपनापन जो अपनी बात न कही जा सके लेकिन अभी भी जब अपने अज़ीज का दांत भीचते और आंखे तरेरते हुआ चेहरा याद करता हूं तो डर जाता हूं...। खैर बाते काफी निजी किस्म की होते हुए भी मै लिख रहा हूं क्योंकि मैने खानाबदोश शुरु करते हुए लिखा था अपने अनुभव ईमानदारी से बांटता चलूंगा सो ईमान की तकरीर तो यही है जो मैने पेश की है।

गांव आया हूं तो दो बात खेत की भी करता चलूं पिताजी ने बताया की बाग मे पुराना ट्यूबवैल का बोरिंग फेल होने के कारण नया बोरिंग करवाया जा रहा है जिसका तीसरे पहर महूर्त होगा और मुझे भी चलना है मै उनको बाईक पर बैठा कर खेत पर ले कर गया और महूर्त करने के लिए जो मिस्त्री द्वारा एक छोटी दिया-बाती वाली पूजा की गई उसमे मैने कौतूहलवश अपने छ्द्म संस्कृत ज्ञान का खुब तडका लगाया दो चार संस्कृत के मंत्रो का सस्वर पाठ किया, आखिर भई गुरुकुल का परास्नातक छात्र रहा हूं सो गांव मे थोडी बहुत पंडताई किस्म की भी छवि बन ही गई है भले ही वर्ण से क्षत्रिय हूं।

आज का लेखा-जोखा बस इतना ही अब कब तक यहाँ यह कह नही सकता एक और पुराने दोस्त आग्रह से कुरुक्षेत्र बुला रहे हैं लगता है कि अभी एक चोट और खाने की ख्वाहिश बाकी है...।

बिछड़े लोगों से मुलाक़ात कभी फिर होगी
दिल में उम्मीद तो काफ़ी है यक़ीं कुछ कम है (शहरयार)

डा.अजीत

4 comments:

  1. बहुत ही शानदार आलेख.........

    हार्दिक शुभ कामनाएं

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  2. बहुत ही सुन्दर और बढ़िया आलेख ! उम्दा पोस्ट!

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  3. बेहतरीन आलेख.पसंद आया लेखन!

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  4. bhai behut hi bedhiya aalekh...leki khanabedoshi main itni gembeerta aour bhaaukta kehan se aagei!.....ye to RISHTOON mai hum seb roj hi dekhetain hain.....Jaane-pehechanai thikani ko chhodh ab kuch anjaani-gumnaam geliyon ki khaak chhano to char-diwariyon main kaid logo (pathko)ko bhi thodi LAPERVAHI-BEPERVAHI our BHATKAON ka sukh neseeb ho...(jaisa lega vaise keha ise koi sujhao met semenjhna).....Jari rekhiye

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