Friday, June 4, 2010

वापसी

आज का दिन कई मायनों मे खास है क्योंकि पिछले एक पखवाडे से मै जिस अनमने मन से जी रहा था उसका क्रम टूट गया है सबसे बडी बात लेपटाप का नया एडाप्टर मिल गया है साधन किस प्रकार आपको निर्भर बना देते है यह पहली बार मैने महसूस किया। आप यकीन नही करेंगे 25 मई से मै अपने हरिद्वार स्थित मकान पर नितांत अकेला रहा हूं न कोई टी.वी.,न अखबार और न ही इंटरनेट से युक्त मेरा लेपटाप और मै एकदम निपट अकेला! कहने को इसे एकांत भी कहा जा सकता है जिसकी तलाश मे अक्सर लोग दर-बदर भटकते हैं लेकिन चूंकि मैने थोडा बहुत मनोविज्ञान पढा इसलिए कह सकता हूं कि मेरे ये पिछले दिन एकांत के तो कतई नही थे, हाँ! थोडा अकेलेपन से भी कुछ सीखने को मिला है।

सबसे बडी सीख तो यही ही जीवन को अनियोजित ढंग से जीने मे ही फायदा क्योंकि जितना हम इसको नियोजित करने की कोशिस करते है यह उतना ही अनियोजित होता जाता है, ऐसा लगता है कोई समानांतर रुप से विरोधाभास अपने अन्दर बैठा है जो हर एक नई चीज़ का विरोध करता है।

बहरहाल संकट के दिन टल गये है और संभवत: आज मेरा हरिद्वार मे आखिरी दिन है अभी थोडी देर बार एक पत्रकार मित्र आने वाले है जिनके साथ हेमकुंट साहिब जाने का कार्यक्रम है उम्मीद भी है और मन भी अब देखने वाली बात यह होगी कि यह प्रस्तावित यात्रा हो पाती है या नही।

वैसे तो रविवार या सोमवार को निकलने का कार्यक्रम है जैसा मुझे अभी तक पता है हो सकता है कि वो अभी आकर अपनी युक्तियुक्त मजबूरी बता कर सारा कार्यक्रम रद्द कर दें, भगवान न करे ऐसा हो! फिर भी कल देहरादून जाया जाएगा वहाँ पर भी अपने के बुरे वक्त के अच्छे साथी रहते है उनके साथ सत्संग होगा। एक दूसरे दार्शनिक मित्र भी देहरादून मे ही है लेकिन वें आजकल मौन साधना मे है तो मै नही चाहूंगा कि उनके मौन मे खलल पैदा करुं...।

अभी के लिए इतना ही थोडे लिखे को ज्यादा समझना....जैसा तज़रबा होता रहेगा आपसे तफसील से रुबरु होता रहूंगा..।

फिर भी...अर्ज़ किया है-

तमाम ऊँचे दरख्तों से बच के चलता हूं

मुझे खबर है के साया किसी के पास नही (मुमताज शकेब)

डा.अजीत

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