Friday, June 25, 2010

शिमला: दो से भले तीन

सुबह रतिराम जी ने दरवाजा खटखटाया तब आंख खुली एक अच्छी थकान भरी नींद से जागने के बाद जो ताजगी महसूस होती है उसी अलसाई बदन से मैने गेट खोला रतिराम जी गर्म चाय की दो प्यालियों के साथ हाजिर थे।एक ठंडी सुबह मे जगते ही बेड टी मिल जाए इस से अच्छी दिन की क्या शुरुवात हो सकती है,मैने रतिराम जी को दिल से धन्यवाद कहा फिर उन्होनें नाश्ते मे बारे मे पुछा कि कब करेंगे मैने कहा आप अपनी सुविधा से दे सकते है जैसे ही तैयार आप रुम मे ले आना। रतिराम जी के व्यक्तित्व मे एक खास बात यह है कि वें उतनी ही बातचीत करते है जितनी जरुरत हो...और वह भी सेवक के भाव से हालांकि वे उम्रदराज़ है लेकिन जिन्दादिल इंसान भी है। चाय की चुस्कियों के साथ यह अहसास हुआ कि बाहर बारिश हो रही सो मौसम के सुहावने होने का पूर्वानुमान हो गया। हमारी इस यात्रा मे एक खास बात यह रही कि हम लोगो से निवृत्त (फ्रेश) होने मे न्यूनतम समय खर्च किया सो जल्दी ही हम दोनो एकदम नाह धोकर तैयार हो गये तभी रतिराम जी दुबारा दस्तक हुई और इस बार वो नाश्ते मे दो-दो आलू के परांठे साथ मक्खन,अचार और चाय के साथ थे,हालांकि परांठे थोडे ठंडे थे लेकिन स्वादिष्ट लगे। हम खा-पी कर एकदम तैयार थे फिर सुशील जी के साथ उनके पहूंचने की स्थिति को लेकर एसएमएस बाजी हुई तब उन्होंने बताया कि रास्ते मे बारिश बहुत हो रही है लेकिन 9 बजे तक पहूंच जाएंगे इस गेस्ट हाउस मे वें एक बार पहले भी मुकेश जी के साथ ठहर चूके हैं सो आने के मार्ग का सरसरी तौर पर उन्हें अन्दाजा था मैने थोडे दिशा निर्देश दिए ताकि उनको रिमाइंड करने मे आसानी हो सके। बारिश तेज़ हो गई है सो हमने भी रुम पर रुककर सुशील जी की प्रतिक्षा करना उचित समझा,लेकिन 9 बज जाने के बाद हमे भी एक खास किस्म की बैचेनी होनी शुरु हो गई और लगने लगा कि शायद सुशील जी यहाँ तक पहूंचने का सही मार्ग न मिल पा रहा हो सो हमने कनेक्टिंग रोड पर जाने का फैसला किया बारिश तेज होने बावजूद भी हम निकल पडे बचते बचाते थोडी ठंड भी लग रही है अभी आधे ही रास्ते मे पहूंचे थे कि लगा अगर अब कही न रुके तो तरबतर हो जाएंगे सो एक मकान के नीचे शरण ली..तभी सामने नजर पडी कि सुशील जी अपनी मर्दाना जैकिट और छाते के साथ पैक हुए धीरे-धीरे नीचे हमारी तरफ आ रहे है परस्पर मुस्कान और अभिवादन के साथ हम दोनो ने भी उनके छाते के नीचे शरण ली और रुम की तरफ बढ चले...अब ये तिकडी बन गई थी सो शिमला मे हम हो गये है दो से तीन और वो भी एक छाते के नीचे सहअस्तित्व का इससे बडा भाईचारे भरा उदाहरण पूरी शिमला मे नही हो सकता है..।

सुशील जी ने कमरे का अस्त व्यस्त सामान देखने के बाद पहली बार अपनी चुप्पी तोडते हुए कहा कि क्या हम तीनो के अलावा कोई और भी रुम मे ठहरा हुआ है मैने कहा नही तो ये सब अपना ही सामान है फिर उन्होने आश्वस्त होने की मुद्रा मे होते हुए अपने आपको खोलना शुरु किया मसलन मौजे उतार कर रिलेक्स हो गये और फिर मैने पहली बार उनको शार्ट्स और टी-शर्ट मे देखा साथ मे फ्रेंच कट दाढी की लुक से एकदम जोशीले नौजवान लग रहे थे हालांकि हम तीनो मे सबसे कम उम्र मेरी है लेकिन पता नही कैसे शरीर पर कुछ ज्यादा की प्रौढता छा गई है रास्ते मे राजीव ने भी मेरी उम्र का अंदाजा 35 प्लस का लगाया था जबकि मै गीता पर हाथ रख कर कसम खा कर कह सकता हूं भईया अभी केवल 28 बंसत देखे है।

सुशील जी अपने साजो समान (सेविंग आदि) के साथ बाथरुम मे जाने की तैयारी करने लगे हुए थे वें एक बार मे ही काम तमाम करने के आदी है मेरी तरह नही एक बार शौचालय फिर नहाना दो चांस तो लेने ही पडते है,बाथरुम मे जाने से पहले उन्होने सार संक्षेप मे अपनी रात्री यात्रा जिसमे उन्होने दूसरे यात्रीयों के मूतने की सुविधा हेतु गाडी रुकवाने मे अपनी निवृत्ति का किस्सा बडी रोचकता के साथ कहा साथ की 205 रुपये का छाता खरीदने की बात बताई जिस 5 रुपये के अखबार जो बारिश से बचने के लिए खरीदे थे और 200 का छाता मोलभाव के साथ खरीदा था।

अब वो बाथरुम मे चले गए थे और हम बारिश के रुकने की प्रतिक्षा मे आनंदमयी प्रार्थना कर रहे है...।

बारिश रुकने का नाम नही ले रही है हम तीनो एकदम तैयार बैठे हैं,जैसे ही बारिश हल्की हुई हम निकल पडे अब हमे सुशील जी के छाते की उपयोगिता का पता चल रहा था एक तरफ मुकेश की और दूसरी तरफ मै बीच मे सुशील जी को प्रोटोकाल देते हुए चल रहे थे मेरी काया इस छाते मे नही समा रही है हालांकि मैने कैप लगाई हुई थी सो मै कभी कभी छाते की सीमाओं से बाहर निकल जाता था त्रियुगल स्वरुप कोई अन्य जोडा हमे माल रोड नही दिखाई दिया। सुशील जी को भुख भी लगी हुई है हमने अभी तक उन्हें नही यह नही बताया था कि हम दोनो ने पंराठो का भोग लगा लिया है इसलिए खाने की बात पर हम दोनो की उदासीनता उनको बैचनी से भर देती है फिर जब हमने अपनी पेट पूजा की बात उन्हें बताई तब उन्हें हमारे साक्षी भाव का रहस्य पता चला। बारिश तेज हो रही और ठंडक बढती जा रही है और छाते के नीचे हमारी पारस्परिक निकटता भी अजीब है जिसका कोई भी अन्यथा अर्थ निकाल सकता था...ये तो मज़ाक की बात है लेकिन मज़ा आ रहा था भीगते-भीगते माल रोड पर चलने मे...। रास्ते मे कृष्णा बेकरी पर रुका गया और वहाँ से सुशील जी ने ब्राऊनी खरीदी वें पहले से ही इसे खाने के मुरीद थे क्योंकि पहले भी शिमला यात्रा के दौरान यह खा चूके थे।हम दोनो ने भी एक-एक बाईट ली और फिर बारिश मे ही निकल पडे लेकिन बारिश के तेजी देखकर हमारा सामूहिक निर्णय हुआ कि किसी एक रेस्त्रां पर रुका जाए और भागते भागते एक अच्छे रेस्त्रां मे शरण ली ज्यादा अच्छा भी नही कहा जा सकता था क्योंकि वहाँ पर लिखा था कि सेल्फ सर्विस

मीनू कार्ड मे चाय के अलावा कोई आप्शन जचां नही वह भी शायद 22/- की थी बरसाती ठंड मे चाय की चुस्कियों के साथ गर्मी पैदा करने की कोशिस मे हम तीनो अच्छी कुर्सियों पर पसर गयें।

मुकेश जी मौन है और मेरी और सुशील जी के संवाद का आनंद ले रहे है जहाँ उनको अपनी बात कहनी होती है वें लिख कर कह देते है,बातो-बातों मे एक पुरानी मित्र का जिक्र आया जिसके व्यक्तित्व के विस्तार पर मैने अपना मनोविश्लेषणात्मक पक्ष रखा लेकिन शायद मै अपनी बात ठीक ढंग़ से समझा नही पाया और बात मेरा पक्ष बनाम साम्यवाद की वर्तमान मे प्रासंगिता की तरफ मुड गई,सुशील जी सन्दर्भ के साथ बात रखते है और मैं सन्दर्भों के मामले मे एकदम गरीब उनकी किस्सागोई और बतकही का मै बडा प्रशसंक हूं वे बहुत ही रोचकता के साथ बात रखते है कोई भी बुद्दिजीवी व्यक्ति उनके सामने जल्दी ही आत्मसमर्पण की मुद्रा मे आ सकता है। खैर! उनके साम्यवादी विचारो और ऐतिहासिक सन्दर्भ मे रुसी उपन्यासों के पात्रों के माध्यम से अपनी बात कहने की गजब की शैली का मै आनंद ले रहा था और अपना ज्ञान को भी सम्पन्न कर रहा था और अब मै श्रोता की भूमिका मे आ गया था क्योंकि मुझे बहस करने की आदत भी नही है बस अपनी बात अपने ढंग से कह जरुर देता हूं।

चाय पीने के बहाने जितनी देर तक हम वहाँ बेशर्मी के साथ बैठ सकते थे....बैठे रहें फिर निकल पडे बारिश कम नही हुई है बस मन को बहला कर चल ही पडे, फिर मुकेश जी की अगुवाई मे हमारा कारवां एक कुलीन रेस्त्रां मे रुका जहाँ पर सुशील जी की भुख का सम्नान करते हुए हमने दोपहर का भोजन करने का निर्णय किया।

बाहर बारिश हो रही है और हम अंदर बैठे भोजन का मीनू तय करने मे लगे है मैने अपनी सम्पूर्ण यात्रा के लिए घोषणा कि जब कभी भी भविष्य़ मे भी मेरी पंसद का ख्याल किया जाए तो दाल मक्खनी हमेशा के लिए फिक्स कर दी जाए इसके अलावा आप जो भी कुछ चाहे मंगा सकते है मुझे कोई अतिरिक्त परिवर्तन नही करना पडेगा...इससे आप मेरे दाल प्रेम का अन्दाजा लगा सकती है घर पर खाने के मामले मे लोग मुझे दालू(दाल प्रेमी) कह भी देते हैं। आर्डर दिया गया दाल मक्खनी,मिक्स वेज़ और बटर नान वेटर के जाने के बाद हम लोग थोडी देर शांत बैठे रहे आत्म संवाद के साथ और फिर पास मे बैठे बेमेल जोडे की बैठने की मुद्राओं से लेकर अंतरंग (यौन विषयक नही) सम्बन्धो की अपने अपने ज्ञान के साथ व्याख्या करने लगे। वैसे तो वहाँ पर बैठे लोगो की कुलीनता को देखकर लग रहा था कि वें शिष्टाचारवश भोजन की अतिरिक्त रुप से प्रतिक्षा करने के आदी है लेकिन मै कतई नही हूं अगर ज्यादा देर हो जाए तो मुझे बैचेनी सी होने लगती है लेकिन यहाँ ज्यादा देर इंतजार नही करना पडा जल्दी ही खाना आ गया और सुशील जी की भुख की तीव्रता के साथ समान रुप से हम भी टूट पडें।

एक विषयांतर करते हुए आपको जानकारी देना चाहता हूं कि सुशील जी मेरे ही गांव के है सो हमारी गांव की खान-पान और जीवन शैली एवं गांव के पुराने ज्यादा खाऊं किस्म के लोगो को लेकर भी अतीत चर्चा अक्सर होती रहती है जिसका आज लुत्फ मुकेश जी भी ले रहे थे।

खाना संपन्न हुआ तो एक-एक गुलाब जामुन के कम्पलीमेंटरी डोज़ का प्रस्ताव मुकेश जी ने दिया वैसे तो वो मौन मे है लेकिन आजकल ऊर्जा के संचयन के कारण मन की वाईब्रेशन बहुत जल्दी पकड लेते है सो मैने मन ही उनका धन्यवाद दिया क्योंकि भाई देहात का आदमी हूं खाने के बाद मिट्ठा न मिले तो पूर्णता का बोध ही नही होता। गर्मा-गरम गुलाब जामुन खाने के बाद ठंड के कारण अतिरिक्त मुत्र विसर्जन की इच्छा को भी शांत किया और फिर यहाँ से निकल पडे।

मौसम ने क्या खुब मज़ाक किया हमारे साथ और मौसम ने ही नही पता एक किस मसखरी के हाथों मेरा मोबाईल नम्बर लग गया बार बार फोन कर रही है और पूछ रही है कि आपका नाम अजीत सर है ना! आप क्या करते हो,कहाँ रहते हो? और बताओं? इतने सवाल दाग रही है कि मै पस्त हो गया मुझे बिना परिचय के फोन रिसीव करने मे खास तरह की खीझ और संकोच होता है। मै बार-बार उसका परिचय और फोन करने की वजह पूछ रहा हूं वो मुझे ही चला रही है हद तो तब हो गई जब उसने कहाँ कि मैने ही उसको अपना नम्बर दिया था और वो भी गुरुकुल मे ही पढती है हालांकि वो सरासर झुठ बोल रही थी क्योंकि उसे यह ही नही पता था कि गुरुकुल अपने आप मे एक विश्वविद्यालय भी है। मैने कहा कि मै शिमला मे हूं ताकि रोमिंग का लिहाज कर अनर्गल प्रलाप बंद कर दे लेकिन उसने सवाल दाग दिया कि शिमला मे क्या हो रहा है? मैने कहा बारिश और तापमान 10 सेंटीग्रेड के आस पास है ये मेरी पहला चुस्त जुमला था जिस पर उसने वार किया कि आप साइकोलाजी पढातें है या जियोगरफी ! मेरी बोलती बंद हो गई,पता नही कौन है कभी मिस काल करती है तो कभी काल करके मेरी आवाज़ सुनती रहती है। सुशील जी और मुकेश जी दोनो मेरी लाचारगी और महिलाओं को एंटरटेन करने की कम तज़रबाकारी पर हँस रहे है,साथ ही कभी-कभी मुझ पर शक भी कर रहें है मुकेश जी ने तो एक चुस्त जुमला भी छोड दिया कि अजीत जी तो छुपे रुस्तम है कभी जिक्र तक नही किया अपने इस सम्बन्ध का! और मैं स्पष्टीकरण दे रहा हूं...हालांकि ये सब मज़ाक मे चल रहा था। हम एक चाय की दुकान पर रुके और चाय का आर्डर दिया इतने मे फिर फोन आ गया इस बार मैने फोन सुशील जी को थमा दिया क्योंकि खबरिया चैनल की भाषा मे कहूं तो वो इस तरह के मामलो के जानकार है लेकिन उसने फोन काट दिया,इसके बाद फोन भी नही आया बस एकाध मिस्स काल जरुरी आयी जिस पर मैने काल बैक नही किया और फिर चाय पी कर हंसी-मज़ाक करते हुए रुम की तरफ बढ चले लेकिन कमबख्त बारिश ने पीछा नही छोडा और हम भीगते हुए चल पडे,रास्ते मे एक छाता और खरीदने का सोचा लेकिन दुकान की मालकिन को सुशील जी का आंटी-आंटी कहना शायद पसंद नही आया और वहाँ पर सौदा नही पटा।

तेज़ बारिश को देखकर हमने सुशील जी को उनके छाते के हवाले किया और कहा अब हमे दौड लगानी ही पडेगी...इसके बाद मैने और मुकेश जी ने माल रोड से अपने रुम तक एक दौड लगाई तेज़ बारिश मे तेज़ दौडने का भी अपना एक अलग मज़ा है लेकिन मै हांफने भी लगा हूं।

खैर जैसे-तैसे रुम पर पहूंच गये और लगभग 70 प्रतिशत भीग भी गये जुते तो एक दम पानी-पानी हो गये है जल्दी ही नये कपडो के साथ लिहाफ मे पैक हो गये और बमुश्किल दस मिनट बाद सुशील जी भी पहूंच गये लेकिन वे भी भीगे हुए थे एक छाते के साथ हम तीनो का कायिक अत्याचार चलता रहा था उस बैचारे की भी एक सीमा थी लेकिन उसने साथ बहुत दिया।

इसके बाद रतिराम जी ने खाने के बारे मे पूछा हम तीनो ने एक स्वर मे मना कर दिया क्योंकि पेट मे खाने की जगह नही थी कुछ पिया जरुर जा सकता था। मैने अपना बेकद्री से पडा लेपटाप उठाया और उसमे प्राण फूंके और सुशील जी को अपना विडियोज़ के कलेक्सन दिखाना शुरु कर दिया खुब वैरायटी थी मेरे पास गज़ल,भजन,पुराने गाने,नये गाने और रागनी सब कुछ मसाला था जिसने सुशील जी का खुब मनोरंजन किया और उन्होने दाद दी मेरे कलेक्सन की और राजकपूर के पुराने गानो को देखकर उनके चेहरे की चमक देखते ही बनती थी।

मुकेश जी ध्यान मुद्रा मे चले गये है और मै और सुशील जी लेपटाप पर गानो का मज़ा ले रहे है फिर अचानक अपनी आदतन सुशील जी ने कहा अच्छा डाक्टर साहब ! गुड नाइट और वें सोने चले गये मैने और मुकेश जी ने कुछ संवाद स्थापित किया फिर मैने कुछ मुशायरे सुने और फिर सो गया...।

आज का बहुत बडा चिट्ठा हो गया कल की बातें अगली पोस्ट में...

डा.अजीत

(नीचे तीन फोटो डाल रहा हूं .. जिससे आप हमारे नये साथी सुशील जी के दर्शन कर सके वे मुकेश जी के साथ रिज़ पर खडे है। एक मुझ आवारा का है और एक फोटो मुकेश जी की ध्यान मुद्रा का है जिसमे दिव्य अनुभूति हो रही है..।)

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