इस जिन्दादिल शहर चंडीगढ के बस अड्डे पर फैली हुई भीड वो भी शिमला जाने वाली को देखकर मेरा मन थोडा सा निराश हुआ लेकिन बाद मे सोचा गर्मी की वजह से शायद यह भीड शिमला की ठंडी वादियों मे जाना चाहती है। हम दोनो लोग भीड मे अपने लिए बैठने की जगह तलाश रहे है लोग-बाग बोरो की तरह यहाँ-वहाँ फैले पडे हुए है,इंतजार को अंतिम विकल्प मानते हुए हमने दो सीट कब्जा ही ली,तभी मुकेश जी ने चाय पीने की इच्छा का सांकेतिक इशारा किया तो मैने भी सहमति मे गर्दन हिला दी लेकिन हमे यह नही पता था कि हमारे पास मे बैठी एक पंजाबी लडकी मुकेश जी के मौन के संकेतो को गौर से देख रही थी, जैसे ही मुकेश जी चाय लेने के गये उसने तपाक से निसंकोच मुझ से वही सवाल दाग दिया कि, “ये अंकल(मुकेश जी) जन्म से ही ऐसे हैं(मूक बधिर) या फिर किसी हादसे के बाद इनका यह हाल हुआ है” मुझे इस बालप्रश्न पर हँसी आई और मैने उसको समझाते हुए कहा कि नही यें मौन व्रत मे है आजकल बस बोलते नही है बाकि अपनी बात लिख कर बता देते है,कान्वेंट स्कूल मे पढी लडकी भला कैसे यकीन कर सकती थी कि मौन जैसी कोई साधना हो सकती है अलबत्ता उसे तो साधना का भी नही पता था,फिर भी वो समझने का अभिनय करती हुई बोली अच्छा कोई ‘नाम-दान’(सत्संग) ले रखा है अंकल ने शायद, मैने आधी सहमति मे सिर हिला दिया क्योंकि मै उसको नही समझा सकता था कि मौन क्या है?
इतने मे मुकेश जी चाय की प्यालियों के साथ आ गये और हम अपनी अपनी चुस्कियों मे मशगूल हो गये चाय बहुत अच्छी थी,इसी हमारे पास बैठी लडकी की बहन भी उसके पास आ गई उसने उसको भी मुकेश जी के बारे ठीक उतने उत्साह के साथ बताया कि जैसाकि उसने अभी एक आठंवा अजूबा देखा हो उसी की तरह उसकी बहन की जिज्ञासा भी मुकेश जी के बारे और अधिक जानने की हो गई,चूंकि मै एक माध्यम की भूमिका निबाह रहा था सो उन दोनो बहनों ने मुझसे आग्रह किया वे मुकेश जी से बात करना चाहती है और जानना चाहती है कि आखिर ये मौन व्रत किस किस्म की बीमारी है!
मैने मुकेश जी से उनकी मंशा बता दी फिर मुकेश जी ने पैड-पैन के माध्यम से बहुत ही सरल और संक्षिप्त रुप से ध्यान और मौन को परिभाषित किया जिसे वें समझनें की कोशिस भी कर रही थी, इसी बीच पास की कुर्सीयों पर एक आवरा किस्म के लडको का जमावडा लग चूका था जिन्हें यह नागवार गुजर रहा था कि उनके समान दो अजनबी मुसाफिरों से लडकिय़ां बडी आत्मीयता से बात कर रही है बाल जिज्ञासु की तरह से...। मुकेश जी अभी लिख ही रहे थे कि उन आवारा लडको ने कमेंट पास करने शुरु कर दिए कि “ हमारा भी इंटरव्यूव ले लो जर्नलिस्ट जी, लगता है इलैक्ट्रानिक मशीन ये तो...आदि-आदि।
मै उनको उपेक्षाभाव से बैठा देखता रहा और मुकेश जी ने केवल मुस्कान से उनके व्यंग्यबाणों का जवाब दिया,लेकिन उनमे से एक लडकी बहुत असहज हो गई थी उसने मुझसे कहा कि आप अंकल को यहाँ से उठने के लिए कह दो ये लडके बदतमिज़ किस्म के है हमे अच्छा नही लग रहा है ये सब मैने कहा हमे कोई फर्क नही पडता क्योंकि यह भी मौन साधना का ही एक हिस्सा है अपने को प्रतिक्रिया शून्य स्थिति रखना ही पडता है लेकिन वो बदमाश लडके अपनी हरकतो से बाज़ नही आए कुछ न कुछ बोलते ही रहे हमने उनको पूर्णत: उपेक्षित कर दिया,लेकिन लडकियों की सहजता को बचाने के लिए हमने वो जगह तत्काल छोड दी।
फिर हमे लगने लगा और अस्तित्व ने भी एक प्ररेणा दी कि हमारा बस से शिमला जाना संभव नही हो पाएगा क्योंकि दो घंटे बीत जाने के बाद भी कोई बस नही आई थी और भीड बढती ही जा रही थी,हमने निर्णय किया की टैक्सी के विकल्प पर विचार करना पडेगा फिर हम दोनो बाहर टैक्सी स्टैंड पर गये मैने किराया आदि पुछा तो एक टैक्सीवाले ने प्राइसटैग की तरह जवाब दिया 1840/- रुपये लगेंगे। हम दोनो वापस बस स्टैंड की तरफ लौटने लगे क्योंकि इतना किराया हमे वाजिब नही लगा था और हमारी जेब भी इतना बडे दिल का होने की इज़ाजत नही देती थी।
फिर मुकेश जी ने प्रस्ताव रखा कि यदि हमे दो और साथी मुसाफिर शिमला जाने वाले मिल जाए तो टैक्सी का किराया दिया जा सकता है शेयर करके मुझे भी यह बात ठीक ही लगी,लेकिन सवाल यह खडा हुआ है कि इतनी भीड मे यह प्रस्ताव कैसे रखा जाए कि दो भाई लोग जो शिमला जाना चाहते हो हमारे साथ आ जाओं हमारे पास टैक्सी का विकल्प है।
थोडी देर तक भीड मे असहज रुप से घुमतें रहे कभी किसी बौद्दिक यात्री तो कभी किसी विदेशी पर्य़टक की तलाश जो हमारे आकर्षक और व्यवहारिक प्रस्ताव मे सहयोग कर सकें, तभी मुकेश जी ने जो निर्णय लिया वह निसंदेह बडे साहस का था कम से कम मै अकेले ऐसा कभी नही कर पाता,उनके यात्रा के अनुभवों और परिपक्वता का मै कायल हो गया था, बहुत कुछ सीखने को मिल रहा था मुझे उन्होनें क्या किया उसके बार मे मै लिख नही रहा हूं आप जो यह चित्र देख रहे है यह टैग लगा कर मुकेश जी खुद शिमला जाने वाली भीड के बीच पहूंच गये..।
इसके बाद तीन लोग सामने आएं और कुछ ने हमे दलाल भी समझा लेकिन उनकी क्या बात करनी वो तीन लोग और हम उसी टैक्सी वाले के पास पहूंच गये जिसने 1840/- मे सौदा तय किया था और वो चलने के लिए तैयार हो गया लेकिन थोडी चलने के बाद कहने लगा कि पांच आदमी हो गये है इसलिए बडी गाडी लेनी पडेगी.बाहर एक दो टैक्सी स्टैंड पर हमको घुमाने के बाद उसने कहा कि 2500/- मे क्वालिस गाडी जा सकती है जिस पर हम पांचो एक स्वर से असहमत थें हमने उससे कहा कि हमे फिर से बस अड्डे पर छोड दे,इसके बाद का नेतृत्व हमारे बीच के आदमी जिसका नाम राजीव था जो दिल्लीवासी था के हाथों मे सौफ दिया उसमे एकाध फोन किए और हमे आश्वस्त किया कि गाडी का जुगाड हो जाएगा, हम फिर से बस अड्डे पहूंच गये। इसके बाद राजीव ने खुद एक टैक्सी इंडिका वाले से बात की वो 1600/- मे तैयार हुआ लेकिन संयोग हमारे दो अन्य साथी जो साथ जाने वाले थे वे हमारा साथ छोड गये। इसके बाद हमने फैसला किया हम तीन ही जाएंगे मै,मुकेश जी और नया साथी राजीव जिसने हमारा जाने का तनाव अपने उपर ले लिया था। हम तीनो ने तय किय हम तीनो ही शेयर डाल कर 1600/- मे यह गाडी लेकर शिमला जाएंगे,हम चल पडे है और इसी बीच दिन भी निकल रहा है...। रास्ते की बातें अगली बार....अभी इतना ही क्योंकि मै भी थक सा गया हूं...किस्से बहुत से है इंतजार कीजिए...।डा.अजीत
रास्ते में छोड़ दी कथा !
ReplyDeleteशिमला जाने का बहुत अच्छा जुगाड किया।
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