...एक घंटे की नींद ने हमारी सारी थकान दूर कर दी और अब हमने शहर का जायज़ा लेने का फैसला किया और अपने रुम को ताला लगा कर निकल पडे मौसम अभी साफ है लेकिन हल्की ठंडक महसूस हो रही है सो मैने अपने ट्रेक सूट के अपर को डाल लिया ताकि सर्दी न लगे, सबसे पहले हम माल रोड होते हुए रिज़ पहूंचे काफी स्पेस वाला सर्कल नुमा जगह है जिसके बारे मे मुकेश जी ने बताया कि जहाँ पर हम लोग खडे हुए है इस जगह के नीचे अंडरग्राउंड वाटर टैंक है जहाँ से पूरे शिमला मे पानी की सप्लाई होती है मुझे सुनकर आश्चर्य हुआ क्योंकि मुझे लग नही रहा था अंडरग्राउंड इतना बडा वाटर टैंक हो सकता है। रिज़ के बिल्कुल पास ही एक पीले रंग का पुता हुआ और पुराने वास्तुकला का नमूना शिमला का संभवत: सबसे पुराना चर्च है अभी उसी गेट पर ताला पडा हुआ था मैने अपने पापो का बाहर से ही कंफेशन किया और आगे निकल पडा। रिज़ पर चहल-पहल बहुत है लेकिन भीड है नवदम्पतियों की जो हनीमून के लिए बाहों मे बाहें डाले भावुक और रोमानटिक मूड मे घुम रहे है। चूंकि मुकेश जी ने पहले इसी शहर मे बतौर मीडियाकर्मी काम किया इसलिए उनके कुछ अपने मेल-मिलाप के लोग भी है जो एकाध हमे मिले भी फिर हम दोनो आगे बढे जा रहे है मुकेश जी एक चाय की दुकान पर रुके उन्होनें बताया जब वे अपने आफिस मे दिन-रात काम करते थे तब यह चाय की दूकान ही खबरो,अफवाहो का केन्द्र हुआ करता था, मुझे अच्छी बात यह लगी कि चाय की दूकान का मालिक बडी भावुकता के साथ मुकेश जी से मिला और न केवल दूकान का मालिक दूकान पर काम करने वाले हर कर्मचारी ने मुकेश जी से मिल कर हाल चाल पूछा जो एक बडी बात लगी क्योंकि जहाँ तक मेरी जानकारी है पत्रकारिता के संबन्ध बहुत ही सतही किस्म के होते जब तक आप मैनस्ट्रीम मे होते लोग खुब सलाम ठोकते है लेकिन जैसे ही अदला-बदली हुई लोग भी आपको भूल जाते है लेकिन मुकेश जी के साथ ऐसा नही हुआ यह उनके आध्यात्मिक व्यक्तित्व और संवेदनशीलता का प्रतीक थी कि इस शहर के मास से लेकर क्लास तक का आदमी उनसे उसी फ्लेवर,कलेवर और तेवर के साथ पेश आये जैसे कभी तब आया करते थे जब वो वहाँ काम करते थे।
चाय की दूकान पर आग्रहपूर्वक एक चाय पी गई, यह इस शहर की पहली चार जिसमे मीठे की मात्रा ने मुझे अपने गांव की चाय दिला दी फिर मुकेश जी ने बताया कि पहाड पर लोग अधिक मीठे वाली चाय ही पंसद करते है क्योंकि इससे उनको चढाई करने के लिए ऊर्जा मिलती है। चाय वास्तव मे अच्छी थी, उसके बाद हमने अपनी राह पकड ली और मै मुकेश जी का अनुसरण करता हुआ ऊंचाईयों से गुजर रहा हूं तभी मुकेश जी ने एक घर पर दस्तक दी और एक आंटी जी ने घर का दरवाजा खोला छोटा काम्पेक्ट किस्म का लकडी का मकान है। आंटी जी को थोडा सा वक्त लगा मुकेश जी पहचानने मे लेकिन फिर वो भी बडी आत्मीयता से मिली,मुकेश जी ने बताया कि शायद कल हम लोग आप यहाँ दोपहर मे खाना खाने के लिए आए क्योंकि अपने एक और साथी कल हमे ज्वाईन करेंगे फिर उनके साथ ही आएंगे। आंटी जी ने खाने का मीनू पूछा बोली कि कल आपके लिए कढी बनाऊ क्या? अगर आपको पंसद हो तो ! मै हां कहने की सोच ही रहा था क्योंकि मुझे कढी बहुत पंसद है तभी मुकेश जी ने कह दिया कल जल्दी ही आपको सूचना दे दी जाएगी शायद दाल-सब्जी खाई जाए लेकिन हमारे आने से पहले कुछ मत बनाना।चाय के औपचारिक आग्रह को मना करके हमने विदा ली. फिर मुकेश जी ने हाथ के इशारे से अपने पुराने आफिस का बोर्ड दिखाया मैने साक्षी भाव से देखा और वापस शहर की राह पकड ली...। रिज़ पर वापस आकर हल्की बून्दी बान्दी होनी शुरु हो गई थी फिर अब थोडी सी भुख भी लगने लगी थी सो हमने भीगने से बचने और पेट को खुराक देने के लिए हिमाचल प्रदेश के पर्यटन विभाग के एक रेस्टारेंट मे शरण ली, सरकारी होने के बाद भी काफी हाई प्रोफाइल किस्म का रेस्टारेंट था एकदम कुलीन और अभिजात्य शिष्टाचार वाली जगह थी जहाँ पर एक आध्यात्मिक शिक्षक मुकेश जी और मेरे जैसा भदेस छ्दम बुद्दिजीवि साधिकार एक अच्छे व्यूव वाली टेबल पर बैठ गये और बारिश का आनंद लेने लगे नेपथ्य मे आर.डी.बर्मन की मदहोश करने वाली रोमांटिक धुने बज रही थी जिसने माहौल को और भी जीवंत बना दिया था,तभी वेटर ने मीनू कार्ड पेश किया वहाँ उपलब्ध वैरायटी ने मुझे थोडा असमंजस मे डाल किया क्योंकि भुख के हिसाब से मै कोई खाने को लेकर प्रयोग नही करना चाहता था सो मैने अपने जाने पहचाने समोसे का आर्डर दे दिया मुकेश जी ने भी मेरे मौन समर्थन किया,बात लिखने मे सस्ती प्रतीत होगी आपको लेकिन समोसे के आगे लिखी कीमत 23 रुपये प्रति एक समोसा ने मेरे सारे गणित को गडबडा दिया क्योंकि मै आज पहली बार 23 रुपये का समोसा खाने जा रहा था सो इस कीमत ने भी समोसे के प्रति और जिज्ञासा बढा दी थी।
हम दोनो आर.डी.बर्मन की धुन के साथ हल्की बारिश का आनंद ले रहे थे और एक कुलीनता के अहसास के साथ लोगो से नजरे भी मिला लेते है कभी-कभी लेकिन अपने साथ होने के अहसास का मजा भी खुब आ रहा है।
शालीन वेटर ने तन्द्रा तोडी और समोसा पेश किया समोसे के आकार-प्रकार ने 23 रुपये की कीमत को जस्टीफाई कर दिया था क्योंकि मैने पहली बार इतना बडा समोसा देखा था, पहले कुलीनता की नकल करते हुए मैने छुरी कांटे से खाने का प्रयास किया लेकिन बात बनी नही सो मैने फिर अपने देशी ढंग से समोसे को चट किया वास्तव मे बहुत स्वादिष्ट समोसा था और जितनी भुख लगी हुई थी वह भी एकदम शांत हो गई थी।
बारिश भी कम पड गई है अब यहाँ निकलने की तैयारी हुई और फिर हम रिज़ से पहूंचे स्कैंडल पाईंट। मुकेश जी ने मुझे बताया कि इस जगह का नाम स्कैंडल पाईंट क्यों पडा? बात यह थी कि हमारे एक महाराजा का मन एक अंग्रेजी मेम पर आ गया और जब उसकी सुन्दरता से मोहित होकर उससे रहा नही गया तब उसने उस मेम के वक्षों को सरेआम भींच दिया था तब से इस जगह का नाम स्कैंडल पाईंट पडा क्योंकि अंग्रेजी हुकुमत के लिए यह घटना एक बडा स्कैंडल था,सजा के तौर पर महाराजा का शिमला आना प्रतिबन्धित कर दिया था जिसके जवाब मे रसिक महाराजा ने शिमला की प्रतिकृति के रुप मे चैल नामक शहर बसाया। मुझे फक्र हुआ अपने उस महाराजा पर जिद हो तो ऐसी।
फिर हम इडिंयन काफी हाऊस पहूंचे जहाँ शहर के पत्रकारों,लेखको और बुद्दिजिवी लोगो का जमावडा लगा रहता है शहर की तुलना मे यहाँ खाने पीने की चीजे भी सस्ती है लेकिन भीड खुब रहती है। बाहर की ठंडक के बाद अंदर बैठकर थोडी गर्माहट महसूस हुई और हमने एक-एक प्लेट वडा-सांभर खाया यह भी खाने मे ठीक था वैसे व्यक्तिगत रुप से मुझे साऊथ इंडियन डिश ज्यादा पंसद नही है।
यहाँ के बाद हमने शहर के माल रोड का एक चक्कर लगाया धीरे-धीरे शाम होती जा रही है और शाम की रोमानियत और भी बढती जा रही है युगल दम्पंतियो को देखकर मन मे रोमांस पैदा हो रहा है लेकिन मन अकेला बावरा हल्की-हल्की बारिश फिर शुरु हो गई अब हम अपने रुम पर लौटने की तैयारी है सो अब हमने ‘खाने-पीने’ का सामान लिया और रुम की तरफ बढ चले रास्ते बारिश और भी तेज हो गई है अब हमने एक दौड लगाई वरना ज्यादा ही भीग जाते। यदि आप कभी शिमला जाने का कार्यक्रम बनाए तो रेनकोट और छाते का इंतजाम जरुर कर लें क्योंकि कब बारिश शुरु हो जाए किसी को पता नही होता।
भागते-भागते रुम पर पहूंचे थोडे भीग भी गये है, यहाँ गेस्ट हाऊस पर एक सेवक है जिनका नाम रतिराम जी बडे ही भले मानस और सेवक शब्द को चरितार्थ करने वाले है हालांकि खाने के लिए पहले बोलना होता है तभी वो बनाते है लेकिन जब हम निकले थे तब वे नही थे सो हमने नही बोला फिर भी उन्होने बताया कि एक-एक प्लेट दाल-भात का जुगाड हो जाएगा हमारे लिए इतना काफी था क्योंकि माल रोड पर हमने गुलाब जामुन और कृष्णा बेकरी के “कुरकेज़”(यही नाम मुझे याद रहा है पता नही सही है या नही) खा चूके थे सो इतनी ज्यादा भुख भी नही थी एक संवाद सत्र के बाद हमने दाल-भात खायी और कल जो अपने एक और मित्र डा.सुशील उपाध्याय जी देहरादून से आने वाले है उनके आने के कार्यक्रम की पुष्टि के लिए उनके साथ एसएमएस बाजी हुई उन्होने बताया कि वे कल सुबह हर हालत मे 9 बजे तक पहूंच रहे है सो अब मन खुश हुआ और सोने के लिए लिहाफ खींच लिए जून के महीने मे लिहाफ मे सोने का जो सुख है वह बताया नही जा सकता है। हाँ लिहाफ मे अकेले गर्माहट पैदा करना अच्छा नही लग रहा है...कोई.....! थकान भी है सो उसी को संगनि बना कर और हनीमून कपलस से जलन करते करते कब नींद आ गई पता ही नही चला...।
कल की आवारागर्दी का किस्सा कल ही बताऊंगा......।
डा.अजीत
बढ़िया रहा आपके साथ माल रोड एवं रिज का सफर...समोसा दामानुरुप रहा जानकर तसल्ली हुई.
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