Friday, June 18, 2010

शिमला: पुराने शहर मे नये लोग


टैक्सीवाले ने हमें लक्कड बाजार उतारा नाम मुझे भी सुनने मे अजीब सा लगा था शायद आपके जेहन मे लक्कडों के ढेर का बाजार जैसी तस्वीर उभरी होगी लेकिन हकीकत मे मैने वहाँ कोई लक्कड नही देखा...लक्कडबाजार मे दो फक्कड...आगाज़ तो अच्छा था अब अंजाम के बारे मे क्या सोचना..। मेरी यह शिमला की दूसरी यात्रा है पहली बार तो बस शहर से गुजर गया था किसी पुरानी प्रेमिका की चूम्मी लेकर जैसे आगे निकल गया हूं तब मुझे नारकंडा जाना था,लेकिन आज पहली बार अपने साथ होकर इस शहर मे आया हूं।मेरे लिए सबकुछ अनजाना है इस शहर मे लेकिन धीरे-धीरे जानने की एक बाल जिज्ञासा पैदा होती जा रही है। मैने मुकेश जी का अनुसरण करना शुरु किया क्योंकि वो पहले इस शहर मे 6-8 महीने गुजार चूके है एक प्रमुख समाचार पत्रिका मे बतौर सीनियर कापी संपादक काम भी किया था उन्होनें सो उनके लिए यह शहर अनजाना नही है। हमने ऊपर की तरफ चढना शुरु किया एक तिब्बती बाजार है बडा ही संकरा सा मार्ग है ऊपर की तरफ जाने के लिए मुकेश जी ने मुझे लिख कर बताया कि पहले हमे माल रोड जाना होगा यह उसका रास्ता है। मै पीठ पर बैग लादे और एक हाथ मे लेपटाप पकडे पीछे पीछे चला जा रहा था इसी बीच कुछ स्थानीय लोग हमारी पर्यटक चेहरे और सामान देखकर बार- बार साथ चलते हुए आफर भी दे रहे हैं साहब! होटल चाहिए तो बताओं,सामान के लिए पिट्ठू भी बार-बार टोकते है, मुकेश जी मौन मे है और मैने मौन मे होने का प्रपंच कर लिया है आखिर यही एक रास्ता था उनके प्रस्तावों से बचने का। कई बार मुझे लगा कि दैत्याकार काया और पर्याप्त चर्बी होने के बाद भी यदि यें लोग मुझको अपना सामान ढोने के लिए असमर्थ समझतें है तो यह मेरे लिए सोचने वाली बात हैं,लेकिन जल्द ही मैने अपने आप को समझा लिया कि हो सकता है कि अभिजात्य वर्ग के मुसटंडे अपनी नवविवाहित पत्नियों के समक्ष अपना सामान उठाना मे अपनी तौहीन समझते हो सो ये लोग अभ्यस्त हो मेरे जैसे चेहरो के बीच अपने ग्राहक होने की संभावना ढूडनें की...अब चेहरे और रंग से भले ही कुलीन होने की छदम छवि भी बनती हो लेकिन मै ठहरा ठेठ भदेस...छदम बुद्दिजीवि देहाती जो इस कुलीन शहर मे खानाबदोशी के लिए आया है। जब कभी मैं लोगो के होटल और पिट्ठू के प्रस्तावों से खीझने लगता हूं तब मै अपना चिरपरचित पुराना आजमाया नुस्खा आजमाता हूं..ठेठ अपनी देहाती मुजफ्फरनगरी बोली मे बोलना शुरु कर देता हूं फिर लोगो के चेहरे पर यह भाव कि कोई जींस-शर्ट और चशमा लगाने भर से लोग कुलीन और सभ्य होंगे इसकी कोई पक्की गारंटी नही होती,यह भाव देखकर मुझे एक अजीब सा सुख मिलता है पता नही क्यों? सबकुछ जानकर अंजान होने का प्रपंच और भदेस,भोला बन जाने मे मुझे खुशी मिलती है।

माल रोड पर हम लोग पहूंच गये है...पहली बार पहाड पर होने का अहसास हुआ है क्योंकि मै हांफ रहा था हालांकि हम दोनो अपनी गति से चल रहे थे लेकिन भारी होने के पहाड पर नुकसान का पहली बार बोध हुआ। मुकेश जी ने माल रोड पर पहूंचते ही अपने मौन मार्ग मे अपनी भूमिका बदली और वें मेरे इस शहर के गाईड बन गये है उन्होने शहर के माल रोड के इतिहास के बारे मे मुझे संक्षिप्त मे बताया कि कैसे अंग्रेजो ने माल रोड को बनाया था,लेकिन हम दोनो ही जल्दी ही बाडी को रिचार्ज करना चाह रहे थे रास्ते का हाल तो मैने आपको बता ही दिया था, मुझे भी मानसिक थकान हो रही है। इस यात्रा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह रही है भले ही मुकेश जी मौन मे है लेकिन हमारी दोनो की परस्पर वाईब्रेशन इतनी मैच कर रही है कि एक दूसरे को अपनी बात कहनी नही पढ रही है बात कहने से पहले ही परस्पर पहूंच जाती है जिससे एक सुविधा और सहजता बनी रही है।

मुकेश जी ने बताया कि पहले हम संस्कृति मंत्रालय के गेस्ट हाउस पहूंचना है जहाँ पर पहले से मुकेश जी ने बुकिंग कराई हुई है...मंद-मंद और थके हुए कदमो से हम गेस्ट हाउस की तरफ बढे जा रहे है,शरीर की थकान पर उर्जा की बौछार सी लगती है जब किसी नवविवाहित युगल दम्पत्ति को बाहों मे बाहें डाले रोमानटिकता के बोध के साथ अपने करीब से गुजरता हुआ देखता हूं... और कभी कभी खुद के निष्ठुर पति होने के ग्लानि भी..याद नही आता कभी पत्नि को इस भाव के साथ घुमाया हो.., बस खुद ही खानाबदोशी की और पत्नि को बाध्य किया अपने इस स्वरुप मे स्वीकारनें के लिए...! खैर! छोडिए बात निजि होती जा रही है।

हम गेस्ट हाउस पहूंच गये है यह शिमला के मौसम विभाग के दफ्तर के ठीक सामने है,पहूंचने पर ज्यादा औपचारिकताएं नही करनी पडी है सीधे कमरे मे जाकर बेतरतीब ढंग से सामान को बिखरा कर कमर सीधे करने लगे।

अभी यह तय हुआ है कि फ्रेश होकर थोडा सोया जाएगा ताकि रात की थकान से मुक्ति मिले..मुकेश जी ने अपने बैग से दो चादरे निकाल दी है मैने और मुकेश जी ने अपनी-अपनी चादरें तानी और सुस्ताने लगें...। कमरे की रोशनी इज़ाजत नही देती है कि सोया जाए लेकिन हमने उसको मात देकर 1 घंटे की नींद ले ही ली...। अब तरोताज़ा महसूस कर रहे हैं और साथ मे तैयारी भी शहर का एक चक्कर लगाने की भी...।

अब एक विराम लेता हूं आप भी तैयार हो जाएं मेरी नज़र से शहर देखने के लिए...।

डा.अजीत

3 comments:

  1. अपनी मेरठी और मुजफ्फरनगरी बोली कमाल की है। सामने वाला ढेर हो जाता है कि यह नहीं मानेगा।

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  2. बहुत दिनों के बाद अपना कोई मिला है ब्लाग पर

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