Monday, June 7, 2010

धनोल्टी वाया मसूरी


सुबह जगते ही चाय की प्याली मिल गयी सो दिन की शुरुवात हो गई पिछ्ली रात की रोचक बात यह रही कि जिस जगह यह मकान है वहाँ रात मे पंखे की जरुरत ही नही है मौसम ऐसा बढिया था कि गर्मी का नामो-निशान नही है बल्कि ठंड और लगी सुबह के वक्त..।

घर से निकलते-निकलते 10.30. हो गये है जैसा पहले तय था हम लोग मसूरी के लिए निकले वो भी अनुरागी जी स्त्रियोचित बाईक होंडा एक्टिवा पर सवार होकर इस बार मैने खुद ही ड्राईव करने का फैसला किया क्योंकि पहाड की यात्रा के लिए अनुरागी जी पर भरोसा नही किया जा सकता है वो अभी सीखने और साहस खुलने की प्रक्रिया मे है..।मौसम एकदम बढिया है मैने चलने से पहले शर्त रख दी थी कि बाईक चलाते समय आप बातचीत जारी रखेंगे क्योंकि चुपचाप पहाड पर चढने मे बडी बोरियत होती है, सो हमने रास्ते मे खुब आलोचना-समालोचना,निन्दारस आदि का सुख लिया जिसमे दूनियादारी के लोगबाग भी शामिल थे और अपने कुछ अंतरंग मित्र भी..। इस बाईक की क्षमता थोडी कमजोर है चढाई पर त्राहिमाम-त्राहिमाम करने लगते है लेकिन चल अच्छी रही है होंडा कम्पनी ने यह बनाई तो है बालाओं या हल्के आदमियों के लिए और आज उस पर आज सवार है मेरे जैसा छ फुट शरीर का दैत्याकार मानव और कवि मित्र अनुरागी जी सो वो भी बेचारी विरोधाभास झेल रही है और अतिरिक्त भार भी..।

बडे शहरो की तन्हाईयों के शिकार और कुछ रईसजादे अपनी मंहगी गाडियों से बडी संख्या मे मसूरी पहूंच रहे है हम भी उन्ही का पिछा करते करते और गरियाते मसूरी के मुख्य गेट पर पहूंच गये लेकिन तभी अचानक मन मे ख्याल आया कि यार! मसूरी तो कई बार आना हो चुका है इस बार किसी नई जगह खानाबदोशी की जाए,तभी नज़र सामने के बोर्ड पर नज़र पडी जिस पर एक एरो का निशान लगा हुआ था और लिखा था धनोल्टी 32 किलोमीटर बस हमारा फैसला हो गया कि मसूरी को मारो लात और अब चलना है धनोल्टी। थोडा बहुत जितनी मुझे जानकारी है उसके हिसाब से धनोल्टी एक नव विकसित पर्यटक स्थल है जहाँ सर्दियों मे खुब बर्फबारी भी होती है सो उसी इमेज़ के साथ गाडी उस अनजाने रास्ते के लिए निकल पडी जिसके बारे मे सुना मात्र था मन मे एक भाव यह भी था कि मसूरी तो अंग्रेजो की बसाई नगरी है अपने देश के उस स्थल पर जाना हो रहा है जिसे हमने बनाया है इसे आप मेरी संकीर्ण मानसिकता भी कह सकते है।

रास्ता बहुत खुबसूरत है कम ही लोग जाते है क्योंकि सभी मसूरी के आकर्षण से ही मुक्त नही हो पाते है।

बहरहाल, धनोल्टी पहूंच गये है और यहा आकर लगा कि यह न एक गांव है और न ही एक कस्बा बस सडक के किनारे कुछ दुकाने है आमलेट और पकौडियों की, कुछ खच्चर वाले घुमते रहते है ऐसे युगलो की तलाश मे मे जो अपनी नव विवाहित पत्नि को खच्चर की यात्रा कराना चाहते है और उनके चेहरे पर भय और कौतुहल को अपने कैमरो मे कैद करना चाहते है चाहे वो मोबाईल से हो या वैसे कैमरे से।

एक छोटे से होटल मे खाना-पीना हुआ और फिर हम लोग साईट सीन के लिए निकल आए लोग बहुत भोले से है आपको लूटना नही चाहते अपनी रोज़ी-रोटी का जुगाड हो जाए यही चाहत है। वहाँ का सबसे बडा आकर्षण ईको पार्क है जहाँ से आप हिमालय के बेहतर नजारे ले सकते है तापमान जून मे भी 15-20 की बीच है अगर मौसम साफ है तो हिमालय की हिमचोटी भी दिखाई देख सकते है।

हमने नीचे एक रेहडी वाले से एक प्लेट पकोडो का आर्डर दिया और ईको पार्क के लिए निकल पडे उसने कहा आप जाइए पकोडे उपर ही पहूंचा दिए जाएंगे हमे एक हट मे बैठे हुए थे और प्रकृति के बेहतरीन नजारो का आनन्द ले रहे थे,निन्दारस यहा भी अपना काम कर रहा रहा था कभी जीवन की सार्थकता और निरर्थकता पर बातचीत होती रही,इसी बीच एक लडका 12 साल का लडका पकौडियों की प्लेट लेकर आ गया मैने पैसे पुछे कितने देने है बोला नीचे आकर दे देना उनके विश्वास और ईमानदारी से मै प्रभावित हुए बिना नही रह सका, मैने पुछा कि स्कूल नही जाते हो क्या वो हँस के बात टाल गया लेकिन मै निरुत्तर हो गया हूं अपने देश के बचपन का यह हाल देखकर।

हमने पकौडियों का आनन्द लिया तभी अनुरागी जी ने वहाँ सामान बेचते हुए लडको औपचारिक रुप से पकौडियो को चखने का आमंत्रण दिया और वे अनापेक्षित रुप से प्लेट पर टूट पडे,सच कहूं मुझे थोडा गुस्सा सा भी आया क्योंकि इसके बाद प्लेट मे एक दो पकौडी ही बची हुई थी लेकिन फिर अहसास हुआ हो सकता है बेचारे सच मे भूखे हों!

एक घंटा यहा बिताया और फिर वापसी की तैयारी नीचे आकर जब पकौडियों की प्लेट के पैसे पूछे तो बोला पचास! थोडा अजीब लगा लेकिन देकर रवानगी ली...।

वापसी मे मैने अपने मित्र अनुरागी जी के गरुड को वायुमार्ग की गति से दौडाया क्योंकि मुझे मुकेश जी के पास पहूंचना था शिमला निकलने के लिए, अनुरागी को अपनी एक्टिवा से बहुत प्रेम है और वे उसे बहुत केयर से भी रखते है मुझे पता है मेरी गति से उन्हे अच्छा भी नही लग रहा है थोडा डर भी रहे है क्योंकि पहाड के घुमावदार रास्तो पर यह स्वाभाविक भी है लेकिन मेरे सम्मानवश कुछ कह भी तो नही सकते सो चुपचाप बैठे रहे।

मसूरी से देहरादून के बीच के रास्ते पर हमने मैगी पाइंट पर मैगी खायी क्योंकि मुझे थोडी भुख लगी हुई थी, इसके बाद देहरादून अनुरागी जी के मकान पर पहूंच कर मैने स्नान किया और एक चाय की प्याली पी फिर वे मुझे मुकेश जी के पास छोड कर लौट आए...अब मै और मुकेश जी रात मे शिमला के लिए निकलेंगे...।

बाद की बाते बाद मे....अभी इतना ही लेकिन आजका दिन सार्थक रहा।

डा.अजीत

1 comment:

  1. धनोल्टी जाना नहीं हुआ है। जब भी जाऊंगा, चम्बा के रास्ते जाऊंगा।

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